संविधान संवाद व्याख्यानमाला 2022: प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल का संबोधन
विकास संवाद द्वारा आयोजित प्रथम’संविधान संवाद व्याख्यान माला 2022’में प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि भारत जैसे देश में कोई भी व्यवस्था तभी चल सकती है जब वह बहुसंख्यक समाज का स्वाभाविक संस्कार बन जाए। कोई भी ऐसी बात जो मानवीय गरिमा को क्षति पहुंचाती हो, उसे लेकर यदि आम नागरिकों के मन में हिचक का भाव होगा तभी उनमें संवैधानिक मूल्यों को लेकर आग्रह और आदर का भाव पैदा होगा।
रविवार 4 सितंबर 2022 को विकास संवाद संविधान फेलोशिप उन्मुखीकरण कार्यक्रम के समापन के अवसर पर आयोजित व्याख्यान में प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि आजादी के बाद के सात दशकों में संवैधानिक मूल्यों को जनता का संस्कार बनाने के गंभीर प्रयासों पर ध्यान नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा किया गया होता तो इतना संवेदनहीन समाज देखने को नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि ऐसे प्रयासों पर जोर दिया जाए।
‘समाज संस्कार और संविधान’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि लोकतंत्र केवल संख्या बल का नाम नहीं है बल्कि वह संस्थाओं और मर्यादाओं से बनता है। उन्होंने भारतीय संविधान को एक दूरदर्शी संविधान बताते हुए कहा कि वह एक बेहतर और न्याय संगत समाज का स्वप्न हमारे सामने रखता है जिसे साकार करने का ध्येय लेकर हमें आगे बढ़ना है। उन्होंने डॉ. बी.आर अम्बेडकर को उद्धृत करते हुए कहा कि भले ही संविधान निर्माताओं के सामने यह चुनौती थी कि उन्हें बुनियादी रूप से एक अलोकतांत्रिक समाज में एक लोकतांत्रिक संविधान लागू करना था लेकिन तथ्य यह भी है कि समाज को अनिवार्य तौर पर न्याय संगत होना ही चाहिए। उन्होंने विकास संवाद संविधान फेलोशिप के भावी फेलोज को भी शुभकामना देते हुए आशा जतायी कि वे समाज में स्थायी बदलाव की दिशा में सार्थक काम करेंगे।