होम / नागरिक चक्रम भाग 7: ऊंची अदालत
चक्रम ने जाना कि किसी भी समस्या का समाधान पाने में अदालत हमारी मदद करती है।

जब भी चक्रम देश का नक्शा देखता, तब उसे उसमें केवल प्रदेशों की सीमाएं नहीं दिखतीं। उसे देश के नक़्शे में हज़ारों-लाखों सीमा रेखाएं दिखतीं। ये सीमाएं थीं आर्थिक विभाजन की, सामाजिक विभाजन की, लैंगिक विभाजन की, भौगोलिक विभाजन की; लेकिन उसने अपने गांव में विभाजन की सीमारेखा को पहचाना और उसे मिटाने के लिए न्यायपालिका का रुख किया; कैसे? आइये पढ़ते हैं नागरिक चक्रम की इस कहानी में।

Similar Posts

  • डॉ. बी. आर. अम्बेडकर और संविधान

    संविधान के साथ डॉ. बी. आर. अम्बेडकर का नाम इस प्रकार जुड़ा हुआ है कि दोनों को एक दूसरे के बिना अधूरा कहा जा सकता है। उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता भी कहा जाता है। अक्सर यह सुनने में आता है कि भारत के संविधान का निर्माण डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने किया। परंतु क्या यह पूरा सच है?

  • मेंढा लेखा का सच: ग्राम स्वराज की कहानी देवाजी की जुबानी 

    विकास संवाद द्वारा आयोजित 17वें नेशनल कान्क्लेव में महाराष्ट्र के मेंढा लेखा गांव के देवाजी टोफा का व्याख्यान। इस व्याख्यान में उन्होंने दिलचस्प अंदाज में बताया है कि कैसे अपने गांव में ग्राम स्वराज का सपना साकार किया। 

  • सबसे कटु दौर में लोकतांत्रिक और मूल्‍ययुक्‍त बना संविधान

    आर्थिक बदहाली, हिंसा, प्राकृतिक आपदाओं, सांप्रदायिक वैमनस्यता के तूफ़ान के बीच संविधान सभा के 250 से अधिक प्रतिनिधि, भारत के लिए ऐसा संविधान…

  • हिंदी दिवस: राज भाषा निर्माण का संघर्ष

    जिस समय भारत ब्रिटिश उपनिवेशवाद से आज़ाद हो रहा था और एक नए राष्ट्र के रूप में उसका एकीकरण हो रहा था, ठीक उसी समय पहली बार भारत की राज भाषा और राष्ट्र भाषा का प्रश्न खड़ा हुआ। संविधान सभा में हिंदी और अहिंदीभाषी सदस्यों के बीच लंबी बहस के बाद हिंदी को राज भाषा बनाने पर सहमति बन सकी।

  • 26 जनवरी: उन बहसों को याद करने का दिन

    26 जनवरी वह दिन है जब 1950 में हमारे देश ने संविधान को अपनाया था और एक गणराज्य के रूप में अपनी नई यात्रा की शुरुआत की थी। उस समय तक देश का शासन भारत शासन अधिनियम के संशोधित स्वरूप के माध्यम से चल रहा था। प्रस्तुत है संविधान सभा की बैठकों के अंतिम सप्‍ताह के महत्‍व को रेखांकित करता यह आलेख।

  • नागरिक चक्रम भाग 5: अंधविश्वास

    हम सब कई बातों को सुनते हैं और उन पर विश्वास करने लगते हैं। समाज में ऐसी कई बातें होती हैं,
    जिनका कोई वैज्ञानिक या प्रामाणिक आधार नहीं होता है, लेकिन लोग आंखें मूंद कर उनमें भरोसा करते हैं। इस बार चक्रम से मिलने आये कुछ कौए। कौए! अरे वही जो काँव-काँव करते हैं। उनकी क्या बातचीत हुई, आइये पढ़ते हैं नागरिक चक्रम की इस कहानी में।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *