क्यों जरूरी है संविधान निर्माण की समझ?‌

क्यों जरूरी है संविधान निर्माण की समझ?‌

आज पूरा देश संविधान दिवस मना रहा है। संविधान दिवस यानी 26 नवंबर का दिन। सन 1949 में आज ही के दिन हमने अपने संविधान को अपनाया था। वही संविधान जो वर्षों तक चली बैठकों, सघन बहसों और वाद-विवाद के बाद हमारे सामने आया था।

संविधान और हम-1 भारतीय संविधान: ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ

संविधान और हम-1 भारतीय संविधान: ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ

भारतीय संविधान को जानने,मानने और अपनाने के लिए ‘संविधान संवाद’ की पहल ‘संविधान और हम’ वीडियो शृंखला की आठ कड़ियों में हम प्रस्‍तुत कर रहे हैं संविधान निर्माण की प्रक्रिया से लेकर महत्‍वपूर्ण प्रावधानों और उसमें हुए संशोधनों का लेखा जोखा।

स्वतंत्र भारत का गांधीवादी संविधान

स्वतंत्र भारत का गांधीवादी संविधान

श्रीमन नारायण अग्रवाल ने गांधी के रामराज्य को परिभाषित करते हुए लिखा है, ‘‘धार्मिक आधार पर इसे धरती पर ईश्वर के शासन के रूप में समझा जा सकता है। राजनीतिक तौर पर इसका अर्थ है एक संपूर्ण लोकतंत्र जहां रंग, नस्ल, संपत्ति, लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न हो। जहां जनता का शासन हो। तत्काल और कम खर्च में न्याय मिले। उपासना की, बोलने की और प्रेस को आजादी मिले और यह सब आत्मनियमन से हो। ऐसा राज्य सत्य और अहिंसा पर निर्मित हो और वहां ग्राम और समुदाय प्रसन्न और समृद्ध हों।’’

बाइस जुलाई: तिरंगे को अपनाने का दिन

बाइस जुलाई: तिरंगे को अपनाने का दिन

भारत की संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को औपचारिक रूप से तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया था। 23 जुलाई को इसे पहली बार औपचारिक रूप से फहराया गया। राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण की पूरी कहानी बहुत दिलचस्प है। 1857 के पहले स्वतंत्रता आंदोलन के पहले देश की विभिन्न रियासतों और राज्यों के अपने-अपने ध्वज थे। विडंबना ही है कि संपूर्ण भारत को उसका पहला ध्वज साम्राज्यवादी अंग्रेजी शासन ने दिया। नीले रंग के इस झंडे में बांयी ओर ऊपर यूनियन जैक बना था जबकि दाहिने हिस्से के बीच में ब्रिटिश क्राउन में स्टार ऑफ इंडिया का चित्र बना था।

मैत्री की शिक्षा संभव, इसका विस्‍तार करना असली चुनौती

मैत्री की शिक्षा संभव, इसका विस्‍तार करना असली चुनौती

प्रख्यात शिक्षाविद अमन मदान ने विकास संवाद द्वारा आयोजित ‘बाल अधिकार मीडिया अवार्ड’ कार्यक्रम में ‘मैत्री की शिक्षा’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्‍होंने कहा, “मैत्री की शिक्षा संभव है लेकिन वास्तविक चुनौती इसकी शिक्षा की नहीं इसके विस्तार की है क्योंकि हमारा देश, समाज, संविधान और सारा विश्व मैत्री के मूल्य से ही संचालित हो सकता है।”

बौद्ध धर्म की दृष्टि में संवैधानिक मूल्‍य

बौद्ध धर्म की दृष्टि में संवैधानिक मूल्‍य

बाबा साहेब अम्बेडकर संवैधानिक मूल्यों के माध्यम से एक सामंजस्यपूर्ण भारतीय राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे। उन्हें अहसास था कि यदि समाज के अंतर्निहित विरोधाभासों से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा गया तो संविधान के उच्‍च आदर्श अधूरे रह जाएंगे।

चुनाव रिपोर्टिंग और संवैधानिक मूल्य

चुनाव रिपोर्टिंग और संवैधानिक मूल्य

सवाल उठता है कि चुनाव‍ रिपोर्टिंग को क्या संवैधानिक मूल्यों के हिसाब किया और परखा जा सकता है? क्या यह संभव है और नैतिक दृष्टि से यह कितना जरूरी है? खासकर तब कि जब चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से उसके समाप्त होने का पूरा ताना बाना आजकल बाजार की शक्तियों से संचालित होने लगा है।

कथानक निर्माण के दौर में एआई और मनुष्‍यता पर संकट

कथानक निर्माण के दौर में एआई और मनुष्‍यता पर संकट

विकास संवाद द्वारा आयोजित 17 वें नेशनल कान्‍क्लेव में चर्चित लेखक और न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. अजय सोडानी ने ‘कथानक निर्माण के दौर में मनुष्यता: एचआई बनाम एआई’ विषय पर संवाद किया। मनुष्‍यता पर मंडरा रहे आधुनिक संकट को समझने के लिए यह व्‍याख्‍यान बेहद महत्‍वपूर्ण कड़ी है।

वाजिब थीं जयपाल सिंह मुंडा की शिकायतें

वाजिब थीं जयपाल सिंह मुंडा की शिकायतें

देश की आज़ादी की लड़ाई के दौर में जहां देश और समाज के सभी प्रमुख मुद्दों पर खुलकर बात की जा रही थी वहीं आश्चर्य की बात है कि आदिवासियों को लेकर बहुत कम बातचीत या विमर्श हो रहा था। भारत को ओलंपिक में हॉकी का पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाली टीम के कप्तान रहे आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने इस विषय पर संविधान सभा में जो कुछ कहा वह एक कड़वी हकीकत है।