पन्ना जिले के रानीपुर गाँव की कहानी
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गयी व्याख्या के अनुसार जल एक मौलिक मानव अधिकार है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार का महत्वपूर्ण अंग है। इसके प्रबंधन मे स्थानीय निकायों और सामुदाय की विशेष भूमिका बतायी गयी है
जब दस्तक महिला समूह ने दिखायी एकजुटता
– रामकुमार ‘विद्यार्थी’
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गयी व्याख्या के अनुसार जल एक मौलिक मानव अधिकार है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार का महत्वपूर्ण अंग है। इसके प्रबंधन मे स्थानीय निकायों और सामुदाय की विशेष भूमिका बतायी गयी है । पन्ना जिले के रानीपुर गाँव के आदिवासी समुदाय की महिलाओं ने संविधान की इस मंशा पर कार्य करते हुए अपने गाँव मे जल संरक्षण व प्रबंधन का जहां अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कियाहै वहीं सामाजिक एकजुटता की दिशा मे कदम आगे बढ़ाया है।
मध्यप्रदेश राज्य का पन्ना जिला हीरा उद्योग के लिए दुनियाभर मे चर्चित है। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि यह क्षेत्र गरीबी और जल संकट से उतना ही प्रभावित है। पन्ना शहर से उत्तर-पूर्व दिशा मे 15 किमी दूर पन्ना टाइगर रिजर्व के बफर जोन से लगा हुआ गाँव है रानीपुर। कभी यह बुंदेलखंड रियासत की एक तहसील हुआ करता था। रानीपुर गाँव मे कुल 141 परिवार हैं जिनमे यादव व गौंड आदिवासी परिवारों की बड़ी संख्या है साथ ही कुछ परिवार बंशकार एवं ब्राहमण जाति के भी हैं। यहाँ जल संरक्षण व प्रबंधन की राह मे समुदायों के बीच आपसी बंधुत्व की कमी एक रोड़ा रही है। विकास संवाद द्वारा संगठित दस्तक महिला समूह ने आपसी मनमुटाव को दूर करने के साथ ही अपने जल संरचनाओं के प्रबंधन का जो कार्य किया है वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 मे वर्णित मंशा को जमीन पर उतारने की दिशा मे अहम प्रयास है।
रानीपुर मे जल संकट और खाद्य सुरक्षा की चुनौती
जल संकट से जूझ रहे इस गाँव मे भामका नामक एक प्राकृतिक जल कुंड है जहां एक मंदिर स्थित है इसलिए आदिवासी व वंशकार परिवारों के लिए यहाँ पानी लेने, नहाने व साफ-सफाई को लेकर अक्सर यादव व आदिवासी परिवारों मे विवाद होता रहा है । भामका से बहने वाला पानी एक नाले की संरचना मे उत्तर दिशा मे बहता हुआ लखनपुर सेहा स्थित खाई मे जाकर समा जाता है। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार इससे लगभग 60 एकड़ भूमि की सिंचाई हो सकती है, किन्तु नाले के शुरुआती हिस्से से जुड़ी भूमि उच्च वर्ग के बड़े किसानों की होने के कारण वे अपने हिस्से मे पानी रोक लेते हैं जिससे आदिवासी परिवारों के खेत असिंचित रह जाते हैं। यह विषय भी गाँव मे समुदायों के बीच तनाव व विवाद का कारण रहा है।
इसी प्रकार गाँव मे वन विभाग द्वारा 20 वर्ष पूर्व बना ठाकुर बाबा तालाब (बंधा) है जिसमे गहरीकरण नहीं होने तथा पानी के रिसाव के कारण वह अनुपयोगी पड़ा हुआ था, इसमे महज दिसंबर माह तक ही बारिश का पानी ठहरता था। वन विभाग व ग्राम पंचायत के बीच सामंजस्य कि कमी के कारण इस तालाब का जीर्णोद्धार नहीं किया जा सका था। जबकि पूर्व मे इस तालाब के पानी से लगभग 22 एकड़ खेत तक नमी पहुँचने व सिंचाई से दो फ़सली खेती होती रही है। इस तरह स्थानीय जल का ठीक से प्रबंधन न होने के कारण गाँव के हैंडपंप और कुएं का जल स्तर भी लगातार गिरता रहा है। माह फरवरी के बाद रानीपुर गाँव के निवासियों के लिए जल संकट की चुनौतियाँ अधिक गंभीर हो उठती थी। इसी बीच संस्था विकास संवाद ने मई – जून 2022 की गर्मी मे इन जल संरचनाओं के प्रबंधन का काम शुरू किया।
तालाब मरम्मत मे महिलाओं ने निभायी सक्रिय भूमिका
विकास संवाद के जिला समन्वयक रवीकान्त पाठक बताते हैं कि रानीपुर गाँव मे जब ठाकुर बाबा तालाब का गहरीकरण का कार्य शुरू किया गया तब यादव व आदिवासी समुदाय के बीच आपसी जल व भूमि विवाद के कारण काम की गुणवत्ता व निरंतरता को लेकर हमारी चिंता रही है। ऐसी स्थिति मे दस्तक महिला समूह से जुड़ी पान बाई, सोमवती, चन्दा व तुलसा गोंड़ ने आगे बढ़कर लोगों को एक जुट करने और काम के लगातार निगरानी का जिम्मा उठाया। इस काम मे आदिवासी व यादव जाति की समन्वित भागेदारी से ठाकुर बाबा तालाब का गहरीकरण व मेंड़ पर मिट्टी डालकर मजबूत बनाने का कार्य मई माह 2022 मे पूरा हुआ जिसमे 43 लोगों द्वारा 3-3 दिन का श्रमदान भी किया गया। फिलहाल बारिश के पानी से भरे इस तालाब के मेड़ पर दस्तक महिला समूह के सदस्यों व किसानों द्वारा पौधे लगाए जा रहे हैं ताकि मिट्टी का बहाव रुक सके। अपने मेहनत से भरे तालाब की ओर देखते हुए दस्तक महिला समूह कि सदस्य चन्दा व तुलसा बाई कहती हैं कि तालाब मे पानी लौटने से आसपास के लगभग 10 कुआं, झिरिया और हैंडपंप मे जल स्तर बढ़ने लगा है। उधर यादव समुदाय के किसान भी अपने खेतों मे नमी बढ्ने व सिंचाई की संभावना को देखते हुए साथ आए हैं ।
स्टॉप डैम बनने से जागी आदिवासी किसानों की उम्मीद
रानीपुर गाँव मे जल संरक्षण की दूसरी पहल भामका नाले मे स्टॉप डैम बनाने के रूप मे हुई । इस गाँव के संतू, बोरा, व नत्थू जैसे आदिवासी जो अपनी 2-2 एकड़ खेती के आसरे ही परिवार का भरण पोषण करते रहे हैं उनके लिए सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी न मिलने की बड़ी समस्या रही है। भामका नाले पर संस्था व सामुदायिक भागेदारी से माह जून 2022 मे एक पक्का स्टॉप चेक डेम तैयार किया गया। इस कार्य में गाँव के 16 मजदूरों द्वारा मजदूरी का कार्य किया गया जिसमे 32 मानव दिवस का श्रमदान भी हुआ । अक्टूबर महीने मे जब स्टॉप डैम के कारण नाले मे भरपूर पानी भरा हुआ है तब यादव समुदाय के भैंसों को पानी पीते हुए और आदिवासी किसानों द्वारा अपने खेतों मे रबी सीजन की तैयारी करते हुए देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है। रानीपुर के किसान शंकर, प्रभु, मुन्ना व रमेश कोंदर बताते हैं कि विकास संवाद के सहयोग से किसान लगभग 42 एकड़ खेत मे गेहूं आदि की सिंचित फसल ले पाएंगे इससे हमारी खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी।
बढ़ी एकजुटता तो मिला संवैधानिक अधिकार
रानीपुर गाँव मे स्थानीय समुदाय की एकजुटता से हुए सामुदायिक जल प्रबंधन कार्य का एक परिणाम यह भी देखा जा रहा है कि गाँव के मध्यम व उच्च वर्ग के किसान भी आदिवासी परिवारों के साथ मिलकर पंचायत से जल संरक्षण कार्यों को कराने की मांग करने लगे हैं। जल संसाधन की कमी से बुंदेलखड़ क्षेत्र के गाँव मे जब किसान आपस मे पेयजल व सिंचाई के लिए पानी को लेकर लड़ते झगड़ते जीवन गुजार रहे हैं तब इस छोटी किन्तु महत्वपूर्ण पहल ने रानीपुर वासियों को संविधान मे वर्णित जल का मौलिक अधिकार दिलाने व जल प्रबंधन मे स्थानीय समुदाय की भूमिका निभाने का अनुकरणीय उदाहरण