किस धर्मांतरण को संविधान सभा ने माना था अवैधानिक
भारत की संविधान सभा में धर्मांतरण के विषय पर गंभीर बहस हुई क्योंकि उपनिवेशवाद के उस दौर में ईसाई धर्मांतरण एक संवेदनशील विषय के रूप में उभर चुका था…
भारत की संविधान सभा में धर्मांतरण के विषय पर गंभीर बहस हुई क्योंकि उपनिवेशवाद के उस दौर में ईसाई धर्मांतरण एक संवेदनशील विषय के रूप में उभर चुका था…
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की खूबी यह है कि इसका एक-एक शब्द महत्वपूर्ण है और वह यह बताता है कि हमारे पूर्वज कैसा भारत बनाना चाहते थे। वह राष्ट्र निर्माण…
देश आज़ाद हुआ लेकिन विभाजन की विभीषिका हमेशा के लिए हमारे अंत:करण पर चस्पा हो गयी। एक तरफ देश अंग्रेजों की गुलामी से निजात पाने के लिए प्रयासरत था…
स्वतंत्र भारत में राजाओं-महाराजाओं और नवाबों आदि को मिले विशेष अधिकारों को लेकर आम जनमानस में कई कहानियां प्रचलित हैं। प्रिवी पर्स यानी निजी थैली…
उपनिवेशवाद के विरुद्ध और अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष करने वाले आदिवासी समुदायों को न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में जरूरी तवज्जो नहीं मिली…
संविधान सभा की पहली बैठक में हुई चर्चा यह बताती है कि हमारे संविधान निर्माता संविधान के मूल्यों, उसकी राजनैतिक पक्षधरता और संवेदनशीलता को लेकर कितने गंभीर थे…
सन 1946 के आखिरी दिनों में जब देश का विभाजन रोकने की तमाम कोशिशों के बावजूद मुस्लिम लीग की जिद के कारण यह लगभग तय हो गया था कि देश का बंटवारा होगा…
भारत की आजादी और देश के संविधान को लागू होने के इतने वर्षों बाद यह महत्वपूर्ण है कि हम संविधान बनाये जाने की परिस्थितियों और संविधान सभा के स्वरूप के बारे में जानें…
ब भारत आज़ाद भी नहीं हुआ था, तब स्पष्ट नीति बनने लगी थी कि बलात श्रम, बेगार और मानव व्यापार को खत्म करके ही हम भीतरी दासता से मुक्त हो सकेंगे…