संवैधानिक मूल्यों की रक्षा में मीडिया की भूमिका

संवैधानिक मूल्यों की रक्षा में मीडिया की भूमिका

कायदे से प्रेस स्वतंत्रता के मामले में भारत का नाम दुनिया के पहले पांच देशों में होना चाहिए था, लेकिन हो उलटा रहा है। हम 11 स्थान और नीचे चले गए हैं। प्रेस और प्रकारांतर से मीडिया की जुबान का इस तरह कैद होना अंतत: संवैधानिक मूल्यों का ही हनन है और संवैधानिक मूल्य ही भारत राष्ट्र के कायम रहने की गारंटी है। मीडिया के पैरों का हिलना संविधान के पायों का डगमगाना है।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अभाव में लोकतंत्र भी पूर्ण स्वतंत्र नहीं

व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अभाव में लोकतंत्र भी पूर्ण स्वतंत्र नहीं

न्याय का अर्थ है नई दिशा की ओर बढ़ना ना कि अतीत की परिस्थितियों की ओर वापस लौटना। क्या हमें ऐसा होता दिखाई दे रहा है? वर्तमान परिस्थितियों तो जैसे प्रतिशोध…

आजादी, समता व बंधुता का अलग-अलग अस्तित्‍व नहीं

आजादी, समता व बंधुता का अलग-अलग अस्तित्‍व नहीं

हमारे संविधान में बंधुता और न्याय शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये कानून से अधिक हमारे समाज से ताल्लुक रखते हैं। इस आलेख में संविधान में इन शब्दों के प्रवेश…

समलैंगिक विवाह : सर्वोच्च न्यायालय का आदेश और संवैधानिक नैतिकता

समलैंगिक विवाह : सर्वोच्च न्यायालय का आदेश और संवैधानिक नैतिकता

समलैंगिक विवाहों से संबंधित हालिया महत्वपूर्ण निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने सामाजिक नैतिकता और संवैधानिक नैतिकता के बीच के अंतर को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है…

संविधान में लोकतंत्र के मायने

संविधान में लोकतंत्र के मायने

भारत को लोकतंत्र की जननी कहा जाता है। हम इस बात पर गर्व करते हैं कि हमारे देश में प्राचीन काल से लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया जाता रहा है…

भारत में शक्तिशाली केंद्र के मायने

भारत में शक्तिशाली केंद्र के मायने

भारत की शासन व्यवस्था ऐसी है जहां केंद्र और राज्यों के लिए अलग-अलग व्यवस्था दी गयी है। दोनों के बीच शक्तियों का बंटवारा इस प्रकार किया गया है कि आपस में…