बौद्ध धर्म की दृष्टि में संवैधानिक मूल्‍य

बौद्ध धर्म की दृष्टि में संवैधानिक मूल्‍य

बाबा साहेब अम्बेडकर संवैधानिक मूल्यों के माध्यम से एक सामंजस्यपूर्ण भारतीय राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे। उन्हें अहसास था कि यदि समाज के अंतर्निहित विरोधाभासों से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा गया तो संविधान के उच्‍च आदर्श अधूरे रह जाएंगे।

चुनाव रिपोर्टिंग और संवैधानिक मूल्य

चुनाव रिपोर्टिंग और संवैधानिक मूल्य

सवाल उठता है कि चुनाव‍ रिपोर्टिंग को क्या संवैधानिक मूल्यों के हिसाब किया और परखा जा सकता है? क्या यह संभव है और नैतिक दृष्टि से यह कितना जरूरी है? खासकर तब कि जब चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से उसके समाप्त होने का पूरा ताना बाना आजकल बाजार की शक्तियों से संचालित होने लगा है।

सबसे कटु दौर में लोकतांत्रिक और मूल्‍ययुक्‍त बना संविधान

सबसे कटु दौर में लोकतांत्रिक और मूल्‍ययुक्‍त बना संविधान

आर्थिक बदहाली, हिंसा, प्राकृतिक आपदाओं, सांप्रदायिक वैमनस्यता के तूफ़ान के बीच संविधान सभा के 250 से अधिक प्रतिनिधि, भारत के लिए ऐसा संविधान…