होम / संविधान और हम-3 : संविधान निर्माण और संविधान सभा की बहसें
संविधान निर्माण और संविधान सभा की बहसें

भारतीय संविधान की निर्माण प्रक्रिया में संविधान सभा के तमाम विद्वान सदस्यों ने सुचिंतित बहस की। इस दौरान देश और देशवासियों के हित से जुड़ा कोई विषय अछूता नहीं रहा। सभा के विद्वान महिला-पुरुष सदस्यों ने एक-एक संवैधानिक प्रावधान पर लंबी बहसें की और जरूरी संशोधन किए ताकि एक ऐसा संविधान तैयार हो सके जो अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक हो और व्यापक रूप से देश के शासन, नागरिकों के साथ राज्य के संबंध और नागरिकों के आपसी संबंधों को मजबूत करता हो, उनका मार्गदर्शन करता हो। संविधान सभा की बहस को जानना का उपक्रम है यह एपिसोड।

Similar Posts

  • चुनाव रिपोर्टिंग और संवैधानिक मूल्य

    सवाल उठता है कि चुनाव‍ रिपोर्टिंग को क्या संवैधानिक मूल्यों के हिसाब किया और परखा जा सकता है? क्या यह संभव है और नैतिक दृष्टि से यह कितना जरूरी है? खासकर तब कि जब चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से उसके समाप्त होने का पूरा ताना बाना आजकल बाजार की शक्तियों से संचालित होने लगा है।

  • डॉ. बी. आर. अम्बेडकर और संविधान

    संविधान के साथ डॉ. बी. आर. अम्बेडकर का नाम इस प्रकार जुड़ा हुआ है कि दोनों को एक दूसरे के बिना अधूरा कहा जा सकता है। उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता भी कहा जाता है। अक्सर यह सुनने में आता है कि भारत के संविधान का निर्माण डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने किया। परंतु क्या यह पूरा सच है?

  • नागरिक चक्रम भाग 4: जाति

    नागरिक चक्रम की कहानियां दरअसल एक ऐसे किशोर की कहानियां हैं जो नागरिक बनने की प्रक्रिया में है। वह प्रश्नों के उत्तर खोजने की इच्छा भी रखता है।

  • नागरिक चक्रम भाग 1: ध्‍यान-बेध्‍यान

    नागरिक चक्रम की कहानियां दरअसल एक ऐसे किशोर की कहानियां हैं जो नागरिक बनने की प्रक्रिया में है। वह प्रश्नों के उत्तर खोजने की इच्छा भी रखता है।

  • लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव, संविधान और नेहरू

    नेहरू जिस भारत का स्वप्न देखते थे, उसमें टुकड़ों में बंटे हुए भारत के लिए कोई जगह नहीं थी। उनके मन में पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक एक भारत की छवि थी…

  • देश का विभाजन, संविधान और नेहरू

    ऐतिहासिक प्रमाणों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल समेत उस दौर के सभी प्रमुख नेता भारत के विभाजन को टालना चाहते थे। परंतु हालात के मुताबिक वे सभी इसे लेकर अलग-अलग नज़रिया भी रखते थे। कुछ मसलों पर न तो सहमति बन पा रही थी और न ही असहमति। मुस्लिम लीग को स्वतंत्र भारत में सरकार बनाने का आमंत्रण भी ऐसा ही एक मसला था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *