संविधान और जवाहरलाल नेहरू-3
लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव, संविधान और नेहरू की भूमिका
भारत के संविधान को तैयार करने में संविधान सभा के सदस्यों की अथक मेहनत थी। संविधान सभा की मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की भूमिका का जिक्र अक्सर होता है। परंतु यह जानना भी अहम है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 13 दिसंबर 1946 को जो लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव सभा में पेश किए थे, वे हमारे संविधान का आधार बने। लक्ष्य संबंधी प्रस्तावों की गूंज संविधान की उद्देशिका सहित कई जगह महसूस की जा सकती है।
सचिन कुमार जैन
संविधान शोधार्थी एवं अशोका फेलोशिप प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता। ‘संविधान की विकास गाथा’, ‘संविधान और हम’ सहित 65 से अधिक पुस्तक-पुस्तिकाओं का लेखन।
नेहरू जिस भारत का स्वप्न देखते थे, उसमें टुकड़ों में बंटे हुए भारत के लिए कोई जगह नहीं थी। उनके मन में पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक एक भारत की छवि थी। वह भारत को लेकर क्या सोचते थे इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। 23 जून 1946 को जब वह उड़ी डाक बंगले में कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह की फौज द्वारा दो दिन तक नजरबंद किए जाने के बाद रिहा होकर दिल्ली पहुंचे तो उन्होंने मीडिया से कहा, ‘‘मैं किसी राज्य में खुद को बाहरी नहीं मानता। पूरा भारत मेरा घर है और मैं कहीं भी जाने का अधिकारी हूं। जो कुछ हुआ उसके लिए मैं कतई क्षमाप्रार्थी नहीं हूं। अगर इससे शासकों या अन्य लोगों को लगता है कि भारत में उनके लिए नए हालात होंगे तो उन्हें ऐसा सोचने दें।’’
इस उदाहरण से अंदाजा लगाया जा सकता है कि नेहरू के सपनों का भारत कैसा था। भारतीय संविधान के निर्माण में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की भूमिका का तो अक्सर जिक्र होता है लेकिन हमें यह भी याद रखना होगा कि भारतीय संविधान के मूल ढांचे के निर्माण का श्रेय जवाहरलाल नेहरू को दिया जाता है। वास्तव में हमारे संविधान का मूल आधार लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव हैं जिन्हें नेहरू ने पेश किया था। भारतीय संविधान की उद्देशिका जिसके बारे में केशवानंद भारती मामले में देश की सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि उसमें छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है, वह भी इसी लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पर आधारित है।
उद्देशिका के अलावा भी संविधान में उल्लिखित अनेक आदर्शों, सिद्धांतों और गारंटियों में नेहरू की उन अभिव्यक्तियों को महसूस किया जा सकता है जिनका उल्लेख उन्होंने लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पेश करते समय किया था।
संविधान का लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव और नेहरू
आजादी के घटनाक्रम कई बार चौंका देते हैं। यूं तो भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था, लेकिन 13 दिसंबर 1946 को ही पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ‘भारतीय स्वतंत्रता का घोषणा पत्र’ संविधान सभा में पेश किया था। आठ बिंदुओं के इस घोषणा पत्र की पहली घोषणा थी –
“यह विधान-परिषद (संविधान सभा) भारतवर्ष को एक पूर्ण स्वतंत्र जनतंत्र घोषित करने का दृढ़ और गंभीर संकल्प प्रकट करती है और निश्चय करती है कि उसके भावी शासन के लिए एक विधान बनाया जाए।”
इसी दिन अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा, “हम कहते हैं कि यह हमारा दृढ़ और पवित्र निश्चय है कि हम सर्वाधिकारपूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र कायम करेंगे। यह दृढ़ निश्चय है कि भारत सर्वाधिकारपूर्ण स्वतंत्र प्रजातंत्र होकर रहेगा। जब भारत को हम सर्वाधिकारपूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र बनाने जा रहे हैं तो किसी बाहरी शक्ति को हम राजा न मानेंगे और न किसी स्थानीय राजतंत्र की ही तलाश करेंगे।’’
इस घोषणा पत्र को संविधान सभा के सभी सदस्यों ने खड़े होकर सहमति दी और स्वीकार किया।
तेरह दिसंबर 1946 को संविधान सभा में लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पेश करते हुए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा, “आप जानते हैं कि यह जो संविधान सभा है, बिलकुल उस किस्म की नहीं है, जैसा कि हममें से बहुत से लोग चाहते थे। खास हालात में यह पैदा हुई है और इसके पैदा होने में अंग्रेजी हुकूमत का हाथ है। कुछ शरारत भी इसमें उन्होंने लगाई है। हमने बहुत गौर करने के बाद उस बयान को, जो कि इस संविधान सभा की बुनियाद सा है, मंज़ूर किया है। हमारी कोशिश रही है और रहेगी कि जहां तक मुमकिन हो, हम उसे उन हदों में चलायें, लेकिन इसके साथ आप याद रखें कि आखिर इस संविधान सभा के पीछे क्या ताकत है और किस चीज ने इसे बनाया है? ऐसी चीजें हुकूमत के बयानों से नहीं बनती हैं। हुकूमत के जो बयान होते हैं, वे किसी ताकत की और किसी मजबूरी की तर्जुमानी करते हैं और अगर हम यहां मिले हैं तो हिंदुस्तान के लोगों की ताकत से मिले हैं। जो बात हम करें, उसी दर्जे तक कर सकते हैं, जितनी कि उसके पीछे हिंदुस्तान के लोगों की ताकत और मंज़ूरी हो- कुल हिंदुस्तान के लोगों की; किसी खास फिरके या किसी खास गिरोह की नहीं।”
पंडित नेहरू ने इसी दिन ‘भारतीय स्वतंत्रता का घोषणा पत्र’ प्रस्तुत किया। इसमें यह बताने की कोशिश की गयी थी कि तब के नेता किस तरह का भारतीय संविधान और संवैधानिक व्यवस्था बनाना चाहते थे। इस घोषणा पत्र में आठ बिंदु थे –
- “यह विधान परिषद भारतवर्ष को एक पूर्ण स्वतंत्र जनतंत्र घोषित करने का दृढ़ और गंभीर संकल्प प्रस्तुत करती है और निश्चय करती है कि उसके भावी शासन के लिए एक विधान बनाया जाए।
- जिसमें उन सभी प्रदेशों का एक संघ रहेगा, जो आज ब्रिटिश भारत तथा देसी रियासतों के अंतर्गत तथा इनके बाहर भी हैं और जो आगे स्वतंत्र भारत में सम्मिलित होना चाहते हों।
- जिसमें उपर्युक्त सभी प्रदेशों को, जिनकी सीमा (चौहद्दी) चाहे कायम रहे या विधान सभा और बाद में विधान के नियमानुसार बने या बदले, एक स्वाधीन इकाई या प्रदेश का दर्ज़ा मिलेगा व रहेगा। उन्हें वे सब शेषाधिकार प्राप्त होंगे व रहेंगे, जो संघ को नहीं सौंपे जाएंगे और वे शासन तथा प्रबंध संबंधी सभी अधिकारों को बरतेंगे सिवाय उन अधिकारों और कामों के जो संघ को सौंपे जाएंगे अथवा जो संघ में स्वभावतः निहित या समाविष्ट होंगे या जो उससे फलित होंगे; और
- जिसमें सर्वतंत्र स्वतंत्र भारत तथा उसके अंगभूत प्रदेशों और शासन के सभी अंगों की सारी शक्ति और सत्ता (अधिकार) जनता द्वारा प्राप्त होगी; तथा
- जिसमें भारत के सभी लोगों (जनता) को राजकीय नियमों और साधारण सदाचार के अनुकूल, निश्चित नियमों के आधार पर सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय के अधिकार, वैयक्तिक स्थिति व सुविधा की तथा मानवीय समानता के अधिकार और विचारों की, विचारों को प्रकट करने की, विश्वास व धर्म की, ईश्वरोपासना की, काम-धंधे की, संघ बनाने व काम करने की स्वतंत्रता के अधिकार रहेंगे और माने जाएंगे; और
- जिसमें सभी अल्पसंख्यकों के लिए, पिछड़े हुए और कबाइली प्रदेशों के लिए तथा दलित और पिछड़ी हुई जातियों के लिए काफी संरक्षण विधि रहेगी; और
- जिसके द्वारा इस जनतंत्र के क्षेत्र की अक्षुण्णता (आंतरिक एकता) रक्षित रहेगी और जल, थल और हवा पर उसके सब अधिकार, न्याय और सभ्य राष्ट्रों के नियमों के अनुसार रक्षित होंगे; और
- यह प्राचीन देश संसार में अपना योग्य व सम्मानित स्थान प्राप्त करने और संसार की शांति तथा मानव जाति का हित-साधन करने में अपनी इच्छा से पूर्ण योग देगा।”
चौदह अगस्त 1947 को संविधान सभा में पंडित नेहरू ने कहा, “चंद मिनटों में यह सभा एक पूरी तौर से आज़ाद खुदमुख्तार सभा हो जाएगी और यह सभा नुमाइंदगी करेगी एक आज़ाद खुदमुख्तार मुल्क की। हमने एक मंजिल पूरी की है।”
नेहरू को भारत की आर्थिक, सामाजिक स्थितियों का भान था और साथ में वे वैश्विक पटल पर घट रही घटनाओं और उनकी कारणों से भी अच्छे से वाकिफ थे। ऐसे में उन वक्तव्यों को ज्यों का त्यों, बिना किसी बदलाव के जानना जरूरी है, जो उस सभा में पंडित नेहरू और अन्य सदस्य अभिव्यक्त कर रहे थे। पंडित नेहरू ने कहा था कि “एक मंजिल पूरी की और आज उसकी खुशियां मनाई जा रही हैं। हमारे दिल में भी खुशी है और किस कदर गुरूर है और इत्मीनान है, लेकिन हम यह भी जानते हैं कि पूरे हिंदुस्तान में खुशी नहीं है। हमारे दिल में रंज के टुकड़े काफी हैं और दिल्ली से बहुत दूर नहीं– बड़े शहर जल रहे हैं। वहां की गर्मी यहां तक आ रही है। खुशी पूरे तौर से नहीं हो सकती: लेकिन फिर भी हमें इस मौके पर हिम्मत से इन सब बातों का सामना करना है। न हाय-हाय करना है न परेशान होना है। जब हमारे हाथ में बागडोर आयी तो फिर ठीक तरह से गाड़ी को चलाना है।
आमतौर से अगर मुल्क आज़ाद होते हैं, काफी परेशानियों मुसीबतों और खूरेंजी के बाद होते हैं। ऐसी खूरेंजी हमारे मुल्क में भी हुई है और ऐसे ढंग से हुई जो बहुत ही तकलीफदेह है। फिर भी हम आज़ाद हुए, बा अमन तरीकों से, शांतिमय तरीकों से और एक अजीब मिसाल हमने दुनिया के सामने रखी। एक बात खासतौर से याद रखना कि जब हम आजादी के दरवाजे पर खड़े हैं, यह एक मजहब वालों का नहीं है, बल्कि बहुत सारे और बहुत किस्म के लोगों का है। यह बात खासतौर से याद रखें कि हिन्दुस्तान किसी एक फिरके का मुल्क नहीं है, एक मजहब वालों का नहीं है, बल्कि बहुत सारे और बहुत किस्म के लोगों का। बहुत धर्म और मजहबों का है।”
आज़ादी के दिन की शपथ
चौदह अगस्त 1947 को संविधान सभा के सदस्यों ने आजाद भारत की सेवा और रक्षा के लिए एक प्रतिज्ञा की। 75 शब्दों की इस प्रतिज्ञा के कुछ शब्द ये थे– त्याग, तपस्या, सेवा, अर्पण, उचित, गौरवपूर्ण, संसार, शांति, मानव जाति, कल्याण और खुशी। भारत की आज़ादी के वक्त की राजनीतिक पीढ़ी बेहद परिपक्वता के साथ राष्ट्र के भीतर और बाहर एक बेहतर समाज बनाने का लक्ष्य तय कर रही थी। उन्हें पता था कि उनका वजूद देश और दुनिया के साथ जुड़ा हुआ है और भारत की आज़ादी कोई विलास की अवस्था नहीं है बल्कि यह एक बहुत अहम जिम्मेदारी है। उस प्रतिज्ञा में कहा गया था कि निश्चय किया जाता है कि रात के बारह बजते ही विधान-परिषद के सभी उपस्थित सदस्य निम्नलिखित प्रतिज्ञा ग्रहण करेंगेः
‘‘अब जबकि हिन्दवासियों ने त्याग (कुर्बानी) और तप से स्वतंत्रता (आजादी) हासिल कर ली है, मैं…..(सदस्य का नाम) जो इस विधान परिषद (आईन साज मजलिस) का एक सदस्य (मेम्बर) हूं अपने को बड़ी नम्रता (निहायत इनकिसारी) से हिन्द और हिन्दवासियों की सेवा (खिदमत) के लिए अर्पण (वक्फ) करता हूं ताकि यह प्राचीन (कदीम) देश (मुल्क) संसार में अपना उचित और गौरवपूर्ण (बाइज्जत) जगह पा लेवे और संसार में शांति स्थापना (अमन कायम) करने और मानव जाति (इंसान) के कल्याण (बहबूदी) में अपनी पूरी शक्ति लगाकर खुशी-खुशी हाथ बंटा सकें।”
पंडित नेहरू को उनके विचारों और उन विचारों में मानवता के मूल्यों के स्पष्ट व्याख्या से पहचाना जा सकता है। 14 और 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि में उनके द्वारा संविधान सभा को दिलाई गयी प्रतिज्ञा से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे जनप्रतिनिधियों और राजनीतिज्ञों की जवाबदेही के प्रति पूरी तरह से सजग और चेतनाशील थे।