मानवीय गरिमा को ‘आदर्श मूल्य’ के रूप में कब स्वीकारेंगे?
हमारे देश में संविधान की गारंटी के बाद भी मानवीय गरिमा का हनन जारी है। जबकि संविधान के भाग 3 में स्पष्ट रूप से सभी नागरिको को समता, स्वातंत्र्य, शोषण के विरूद्ध अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा संंबंधीअधिकार व सांविधानिक उपचारों का अधिकार मौलिक अधिकार के रूप में दिए गए हैं। यही हमारे संविधान की सबसे बड़ी ताकत और नेमत है।
अजय बोकिल
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं संविधान संवाद फेलो हैं।
भारतीय संविधान की उद्देशिका में स्पष्ट कहा गया है कि ‘हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दि. 26 नवंबर 1949 को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
इस उद्देशिका में लोगों की स्वतंत्रता के साथ व्यक्ति की गरिमा का विशेष रूप से उल्लेख है, न उल्लेख है बल्कि यह एक तरह से इस देश में रहने वाले तमाम नागरिकों की गरिमा की सुरक्षा की गारंटी भी है, लेकिन आजादी के अमृत काल तक यही वो मूलभूत तत्व है, जिसकी लगातार अवहेलना हो रही है न केवल अवहेलना बल्कि उसे तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। यही स्थिति देश में महिलाओं की भी है। जिसमें अब इन वर्गों का कमजोर होने के साथ साथ जातीय व समुदायिक घृणा व प्रतिशोध का भाव भी जुड़ गया है। ऐसे में सवाल तो यह उठता है कि क्या भारतीय संविधान का हमारे लिए क्या यही अर्थ है? क्या इसीलिए संविधान में मानवीय गरिमा को सबसे महत्वपूर्ण मानते हुए समता और समानता की गारंटी की बात कही गई है?
मध्यप्रदेश के सीधी जिले के कुबरी बाजार का पेशाब कांड स्वतंत्र भारत की शायद ऐसी शर्मनाक घटना है, जिसे पूरी दुनिया ने देखा और अपना सिर झुका लिया। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर पेशाब करे, इससे घृणित कृत्य शायद दूसरा कोई हो ही नहीं हो सकता। इस करेले पर चढ़ा नीम यह कि जो व्यक्ति बेझिझक पेशाब कर रहा था, वो सवर्ण है और जिस पर पेशाब की जा रही थी, वह आदिवासी है। वो आदिवासी, जिसे हम इस देश का मूल निवासी मानते हैं।
इस घटना को आजाद भारत की अत्यंत निकृष्ट और लज्जास्पद घटना इसलिए माना जाना चाहिए कि यह किसी लापरवाही अथवा अज्ञानतावश किया गया कृत्य नहीं था। यह मनुष्यमात्र की गरिमा को अपमानित और उसे उसकी औकात दिखाने की नीयत से किया गया (दु) ष्कृत्य था। इसके पीछे जातीय अहंकार, उच्चता का झूठा भाव, जन्मगत श्रेष्ठता का अतार्किक दुराग्रह और आदिवासी तथा निम्न जाति वालों को निकृष्ट मानने की गंदी मानसिकता है।
मानवीय गरिमा: एक अंतनिर्हित मूल्य
जब विश्व ने मानव गरिमा को मान्य किया तो इसका अर्थ यही है कि मनुष्य में उसकी गरिमा एक अंतर्निहित मूल्य है। इस गरिमा की रक्षा के लिए मनुष्य कुछ अधिकारों के लिए भी अधिकृत है। पारंपरिक रूप से मानवीय ‘गरिमा’ से तात्पर्य व्यक्ति की सम्पत्ति, शक्ति एवं उसकी सामाजिक हैसियत से लिया जाता है। लेकिन बतौर मुहावरे के ‘मानवीय गरिमा’ का संबंध हर व्यक्ति के सम्मान तथा उस विश्वास से है, जो मानवीयता के गुण पर आधारित होती है।
इसका सीधा संबंध समता और समानता से है। क्योंकि हम सब मनुष्य हैं। इसलिए रंग, रूप, जाति, नस्ल, भाषा, संस्कृति, सभ्यता और बौद्धिक वैविध्य के बावजूद मूलत: मनुष्य होने के नाते हम सब बराबर हैं और इसी समानता का भाव मनुष्यता का स्थायी गुण और पर्याय है।
भारत के संदर्भ में यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस प्राचीन देश में कई विचार, वाद और मतांतर रहे हैं। लेकिन मनुष्य मात्र में भेदभाव और किसी एक जाति या नस्ल द्वारा दूसरे को निम्नतर समझना, उसे हिकारत के भाव से देखना और तुच्छ व्यवहार करना देश के लंबे समय तक गुलाम रहने के अहम कारक रहे हैं। गुलामी ने हमे और रूढि़वादी और आत्मकेन्द्रित बनाया। जिससे अपनो को ही शूद्र अथवा अछूत मानने की सोच हमारे सामूहिक मानस में भी गहरे तक धंस गई। संविधान निर्माताओं ने इस सामाजिक विषमता और उसके आधार पर खड़े समाज की इस न्यूनता को गहराई से समझा और संविधान की उद्देशिका में ही व्यक्ति की गरिमा और समानता कायम रखने का संकल्प घोषित किया।
स्पेनिश लेखक बाल्तसार ग्रेसियान के अनुसार हम गरिमा को खो देते हैं, अगर हम असहनीय को सहन करते हैं। इसे मानवीय गरिमा के संदर्भ में समझा जा सकता है। भारत में अगर मानवीय गरिमा को रौंदने वाली घटनाएं अगर लगातार हो रही हैं तो इसका मुख्य कारण यही है कि पीडि़त समाज इसका प्रभावी ढंग से प्रतिकार नहीं कर पा रह है और मजबूरी में इसे सहन करता जा रहा है। मानवीय गरिमा का यह हनन जाति सूचक अपशब्दों के प्रयोग, मारपीट, व्यक्ति पर मूतना या उसके मुंह में जबर्दस्ती मल ठूंसना, दलितों को बारात न निकालने देना, आदिवासियों की पिटाई, महिलाओं के साथ ज्यादती के रूप में देखने में आता है।
मानवीय गरिमा और मानवाधिकार
जब हम मानवीय गरिमा की बात करते हैं तो मानवाधिकार की प्रासंगिकता अपने आप सिद्ध होती है। मानवाधिकार की संयुक्त राष्ट्र संघ की परिभाषा के अनुसार मानवाधिकार इसलिए हैं, क्योंकि हमारा अस्तित्व एक मनुष्य के रूप में है। ये मानवाधिकार हम सभी के भीतर अंतर्निहित है, जो किसी अवस्था के लिए नहीं प्रदत्त किए गए हैं। मानवाधिकार राष्ट्रीयता, लिंग, राष्ट्र अथवा नस्ली मूल, रंग धर्म, भाषा अथवा और किसी स्थिति से परे हैं। यानी ये जीने के मौलिक अधिकार से सम्बद्ध हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 1948 में मानवाधिकार घोषणा पत्र स्वीकार किया। यह मानवाधिकारो की रक्षा का पहला कानूनी दस्तावेज है तथा सभी मानवाधिकार कानूनों का आधार है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है समता। भारतीय संविधान की अनूठी बात यह है कि इसमें समता, समानता के साथ न्याय की आवश्यकता को भी जोड़ा गया है। जिससे इसकी मंशा और व्याप्ति समूची मानवता तक हो जाती है। इस घोषणा पत्र के 30 अनुच्छेदों ने सैद्धांतिक रूप से वर्तमान और भाव मानवाधिकार सम्मेलनो, संधियों और अन्य कानूनी व्यवस्थाओं को आधार प्रदान किया।
लेकिन हमारे देश में संविधान की गारंटी के बाद भी मानवीय गरिमा का हनन जारी है। जबकि संविधान के भाग 3 में स्पष्ट रूप से सभी नागरिको को समता, स्वातंत्र्य, शोषण के विरूद्ध अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा संंबंधीअधिकार व सांविधानिक उपचारों का अधिकार मौलिक अधिकार के रूप में दिए गए हैं। यही हमारे संविधान की सबसे बड़ी ताकत और नेमत है।
मध्यप्रदेश में ऐसी घटनाएं बढ़ीं
यहां हम मध्यप्रदेश के संदर्भ में ही बात करें तो बीते एक वर्ष में मानवीय गरिमा को कलंकित करने वाली कई घटनाएं हुई हैं और लगातार होती जा रही हैं। जबकि प्रदेश में लगातार शिक्षित होते समाज में ऐसी घटनाएं कम होती जानी चाहिए। इसका अर्थ यह है कि केवल शिक्षा समाज का मानस नहीं बदलती। उसके लिए मानव मूल्यों की समझ और उसका आदर करने की वृत्ति चाहिए, जो संविधान की भावना को आत्मसात करने से ही संभव है। मानवीय गरिमा का यह हनन दलितों, आदिवासियों और महिलाअों के साथ मुख्य रूप से हो रहा है। इनमें से कुछ प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं-
दलित
1. दलित की बारात में डीजे बजाने पर बारात पर पथराव
मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले के गांव मोहन बड़ोदिया में मोहन बड़ोदिया क्षेत्र में एक दलित दूल्हे की बारात निकालने के दौरान डीजे पर जय भीम का गाना बजाने पर दो पक्षों में विवाद हो गया। इसके बाद दबंगों ने बारात पर पथराव किया, जिसमें दूल्हा पक्ष के एक व्यक्ति को चोट भी आई है। शिकायत के बाद पुलिस ने मामला दर्ज किया।
2. दलितों के मंदिर प्रवेश पर रोक
मध्यप्रदेश के धार जिले के कुक्षी विकास खंड के लोहारी ग्राम के नर्बदेश्वर मंदिर के बाहर बैनर लगा दिया गया कि निवेदन है कि हरिजनों का मंदिर में आना सख्त मना है। इसी खुले भेदभाव के बाद दलितों ने हंगामा कर मनावर कुक्षी मार्ग पर चक्का जाम कर दिया। बाद में प्रशासन ने मंदिर पहुंच कर बैनर हटवाया। बैनर लगाने वाले के खिलाफ पुलिस ने एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला कायम किया है।
3. दलितों के मुंह में जबरन मल ठूंसा
मध्यप्रदेश के ही शिवपुरी जिले में चोरी के झूठे आरोप में दो दलित युवकों के साथ मारपीट की गई तथा उनके मुंह में जबरन मल ठूंसा गया। मुह पर कालिख पोती गई और जूतों की माला पहनाई गई। इस मामले में पीडि़त दलित और आरोपी अल्पसंख्यक समुदाय के हैं और अमानवीय कृत्य करने वालों में दो महिलाएं भी हैं। इससे यह पता चलता है कि सामाजिक न्याय की मांग करने वाले वर्ग भी एक दूसरे पर अत्याचार करने के मामले मे पीछे नहीं हैं। शिवपुरी जिले के नरवर थाना क्षेत्र के रखाड़ी गांव में लड़कियों से छेड़छाड़ और चोरी के शक में दो युवकों अर्जुन जाटव और संतोष जाटव को पहले कमरे में बंद कर पीटा गया। मारपीट के बाद इन्हें पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया। पीडि़तों की शिकायत पर पुलिस ने दोनो युवकों के साथ अमानवीय कृत्य करने वाले 7 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया। जिनमें दो महिलाएं भी शामिल हैं। इस विवाद के मूल में वन विभाग की जमीन पर अवैध कब्जा भी है। बाद में प्रशासन ने आरोपियों के घर बुलडोजर से ढहा दिए। यहां आरोपी उस अल्पसंख्यक समुदाय के हैं, जो स्वयं सामाजिक न्याय की मांग करते रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि अल्पसंख्यक समुदायों का दलितों के प्रति रवैया वही है, जो उच्च जातियों का है।
4. दलित की जमीन नापने जरीब भी नहीं
मध्यप्रदेश में दलितों के प्रति भेदभाव की इंतिहा यह है कि उनकी जमीन की नपती के लिए पटवारी के पास जरीब तक नहीं है। जो जरीब मिलती है, वह पटवारी की मान्यता के अनसार ऊंची जातियों के लिए है। इसका अर्थ यह है कि किसी दलित की जमीन को स्पर्श करने पर लोहे जरीब (लंबी सांकल) भी अपवित्र हो जाएगी। प्रशासन के इस भेदभाव से परेशान एक दलित अपनी जमीन के नपती के लिए शरीर पर नई जरीब लपेट कर कलेक्ट्रेट पहुंच गया। मामला विदिशा जिले की लटेरी तहसी के बापचा गांव का है। इस गांव से 130 किलोमीटर का सफर तय कर फरयादी मलखान अहिरवार अपनी जमीन की नपती की मांग को लेकर कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचा। मलखान को देखकर जिले का हर शख्स हैरान था ,क्यूंकि मलखान ने अपने शरीर को लोहे की जंजीरों से जकड़ रखा था, मलखान का कहना था कि आख़िर वो जरीब कहां से लाऊं जिससे दलित की जमीन नापी जा सके।
मलखान ने जमीन के सीमांकन और नपती के मामले में पटवारी और चौकीदार पर छुआछूत सहित पैसों को लेकर भी कई गंभीर आरोप लगाए और कहा कि रिश्वत देने के बाद भी जमीन की नपती नहीं की गई।
5. गर्म समोसा छूने पर दलित से मारपीट
होटल में गर्म समोसा खाने तो क्या छूने तक की इजाजत दलितों को नहीं है। दलित का दोष यही था कि उसने छूकर देखने की हिमाकत की कि समोसे ठंडे हैं या गरम। जिले के जबेरा थाना के चंडी चौपरा बस स्टैंड पर एक होटल में सुरेंद्र कुमार अहिरवार निवासी पटी महाराजपुर चंडी चोपड़ा गांव होटल में समोसा खाने पहुंचा था। उसने हाथ से समोसों को छूकर देखा कि ठंडे हैं या गर्म। इसी बात से भड़के होटल संचालक निजाम लोधी ने सुरेन्द्र को जातिगत अपशब्द कहे और उसे लाठियों से पीटा। सुरेन्द्र द्वारा थाने में शिकायत के बाद उसे रिपोर्ट वापस लेने के लिए धमकाया गया। यहां आरोपी उस पिछड़ा वर्ग समुदाय का है, जो स्वयं सामाजिक न्याय की मांग करने में अग्रणी है।
6. दलित दूल्हे की शादी में कांच फोड़े
मंदसौर जिले के गरोठ थाना क्षेत्र के गांव पिपलिया राजा में एक दलित सैनिक दूल्हे की बारात निकलने से नाराज में कुछ लोगों ने उसकी शादी में जमकर बवाल मचाया। गालियां दी, पत्थर फेंके, पुलिस की गाड़ी के कांच फोड़े, मारपीट करने के साथ ही बारात के रास्ते में कांटे और पत्थर बिछा दिए, ताकि उसकी बारात नहीं निकल पाए। दलित युवक अर्जुन मेघवाल सेना में है। उसकी बारात रात में निकल रही थी तभी मीणा समाज के एक युवक जीवन मीणा की बारात भी गांव में निकल रही थी। अर्जुन की बारात निकलने से नाराज मीणा समाज के लोगों ने अर्जुन की बारात की राह कांटे बिछा दिए और जमकर मारपीट की, जिसमें मेघवाल समाज के 6 लोग घायल हो गए। पुलिस ने इस मामले में 29 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद ही अर्जुन की बारात निकल सकी। यहां दलित की बारात रोकने वाला मीणा समाज मप्र में पिछड़े वर्ग में आरक्षित है, जबकि राजस्थान में इसे अनुसूचित जाति का दर्जा मिला हुआ है। मप्र में भी मीणा एसटी का दर्जा चाहते हैं। लेकिन दलितों के साथ उनका व्यवहार अमानवीय है।
आदिवासी
1. मामूली विवाद पर आदिवासी बच्चों की पिटाई
मध्यप्रदेश के ही इंदौर जिले के राऊ में गाड़ी हटाने के मामूली विवाद में दो आदिवासी बच्चो की बेरहम पिटाई की गई। पुलिस के मुताबिक आदिवासी अंतर सिंह की गाड़ी फिसल गई। इसके बाद ट्रेजर फेंटेसी के गार्ड सुमित चौधरी का अंतर से विवाद हो गया। सुमित सड़क से जल्दी गाड़ी हटाने की बात कह रहा था। विवाद इतना बढ़ा कि सुमित अंतर सिंह को गार्ड रुम में ले गया और उसकी जमकर पिटाई कर दी। अपने भाई अंतरसिंह को खोजते हुए उसका भाई शंकर डाबर आया तो उसे भी सुमित और उसके दोस्तों ने बुरी तरह पीटा और रात भर बंधक बनाए रखा। पिटने वाले दोनो आदिवासियों ने अपने गांव नालछा जाकर लोगों को सारी बात बताई, तब पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया।
2. आदिवासी युवक पर पेशाब
मध्यप्रदेश के ही सीधी जिले के कुबरी में एक सवर्ण युवक ने सरे आम एक आदिवासी युवक पर पेशाब की तो सारा देश स्तब्ध रह गया। क्योंकि आादिवासियों को प्रताडि़त और अपमानित करने का यह नया तरीका था। इस घटना की चौतरफा निंदा हुई। इससे प्रदेश के आदिवासियों में गए गलत संदेश के मद्देनजर मुख्यमंत्री ने पीडि़त आदिवासी को भोपाल बुलाकर चरण पखारे। लेकिन बाद में पीडि़त बोला कि मैं वो असल में पीडि़त नहीं हूं। इससे सरकार की भी किरकिरी हुई। यह अभी भी रहस्य है कि जिस पर पेशाब की गई, वो युवक असल में कौन था और अब कहां है। इस मामले में प्रशासन द्वारा आरोपी का घर बुलडोजर के ढहाने के विरोध में ब्राह्मण समाज जरूर एकजुट हुआ। इस मामले में प्रशासन की कार्रवाई सवर्ण और आदिवासियों की खाई को और बढ़ाती दिखी।
महिला
नाबालिग से गैंगरेप
मध्यप्रदेश के ही इंदौर जिले के खुडैल गांव में 13 साल की नाबालिग से तीन आरोपियों ने गैंगरेप किया। शाम को बच्ची ने अपनी मां को पूरी घटना बताई। मां परिवार के साथ पुलिस के पास पहुंची। पुलिस ने तत्काल केस दर्ज कर आरोपियों की तलाश शुरू कर दी। कुछ ही देर में पुलिस ने तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। वहीं शुक्रवार सुबह एक आरोपी का मकान ढहा दिया गया। तीनों आरोपी मकान निर्माण के काम से जुड़े हैं।