संविधान संवाद टीम

‘जीवन में संविधान’ पुस्तक से:

19 बरस की उस लड़की का नाम मीनाक्षी था। वह दिल्ली के आनंद पर्वत इलाके में रहती थी। वहीं रहनेवाला जयप्रकाश और उसके कुछ साथी अक्सर मीनाक्षी के साथ छेड़खानी किया करते थे। छेड़खानी एक संगीन अपराध है, लेकिन हमारी फिल्मों ने इसे एक हल्की-फुल्की बात या प्यार-मोहब्बत की राह में पहली सीढ़ी की तरह स्थापित करने का जुर्म भी किया है। हालांकि, यह सच के एकदम उलट है। मीनाक्षी पर फब्तियां कसी जातीं, उससे अश्लील बातें कही जातीं। ये लड़के मीनाक्षी को देखकर जोर-जोर से हंसते, उसे घूरते रहते। यह व्यवहार मीनाक्षी को असहज बनाता था। उसके मन में डर घर कर गया और वह तनाव में रहने लगी।

मीनाक्षी को इस स्थिति में देखकर उसके घर वालों ने पहल की और जयप्रकाश के परिजनों को यह बताया कि वे युवक मीनाक्षी के साथ किस तरह का व्यवहार कर रहे हैं। इस पर दोनों परिवारों के बीच कहासुनी हो गई, लेकिन छेड़खानी का सिलसिला बंद नहीं हुआ। हालात इतने खराब हो गए कि मीनाक्षी को घर से बाहर निकलने में भी डर लगने लगा। आखिरकार उसके माता-पिता ने पुलिस में शिकायत करने का मन बनाया। अंततः सन 2013 में शिकायत दर्ज होने के बाद कार्रवाई हुई और जयप्रकाश को कुछ दिन जेल में बिताने पड़े।

जयप्रकाश और उसके परिजनों को उसकी हरकतों में कुछ भी गलत नहीं लग रहा था। आखिर वे समझते थे कि समाज में यह सब सामान्य है। उन्हें इस बारे में पुलिस से शिकायत करना और जयप्रकाश को जेल भिजवाना अपना अपमान लगा और उन्होंने मीनाक्षी से बदला लेने का निर्णय लिया।

16 जुलाई 2015 को मीनाक्षी अपने घर से कुछ दूर स्थित किराने की दुकान पर सामान लेने गई थी। जब वह दुकान से लौट रही थी तब जयप्रकाश और उसके दोस्त ईलू ने मीनाक्षी को अपशब्द कहना शुरू कर दिया। मीनाक्षी द्वारा विरोध करने पर दोनों ने उस पर हमला बोल दिया और उसके शरीर पर आठ वार किए। वहां खड़े लोग तमाशबीन बने रहे और उनमें से कोई भी मीनाक्षी के बचाव के लिए आगे नहीं आया। चीख सुनकर मीनाक्षी की मां जरूर उसे बचाने दौड़ी, लेकिन जयप्रकाश और उसके दोस्त ईलू ने उन पर भी हमला कर दिया।

आखिर मीनाक्षी ने दम तोड़ दिया। इस घटना के बाद पूरे इलाके में शोक की लहर दौड़ गई। लोग दुखी हुए पर सच तो यही था कि जिस समय मीनाक्षी के साथ बुरा बर्ताव किया जा रहा था, तब मोहल्ले के लोगों ने एक समाज के रूप में एकजुट होकर इन युवकों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया, बल्कि वे अक्सर ऐसी घटना पर हमेशा तमाशबीन बने रहते।

घटना के कुछ समय बाद समाचार सेवा बीबीसी ने कुछ लड़कियों से बात की। उनमें से एक लड़की बरखा ने बताया कि मीनाक्षी के साथ घटी घटना ने लड़कियों को और अधिक भयभीत कर दिया है। लड़के मोहल्ले में अब भी उसी तरह खड़े होते हैं। मीनाक्षी ने पुलिस में शिकायत करने का हौसला दिखाया था, लेकिन उसका हश्र देखकर अब कोई शिकायत करने भी नहीं जाता।

पास ही रहने वाली 16 वर्ष की कोमल भी इन लड़कों के कारण अपनी पसंद के कपड़े तक नहीं पहनती है, इस उम्र में भी उसके भाई या पिता स्कूल की वैन तक उसे छोड़ने जाते हैं। इसी मोहल्ले में रहने वाले 47 वर्ष के अशोक ने कहा कि उन्हें इन लफंगों से प्यार से बात करनी पड़ती है, ताकि यह हादसा किसी और के साथ दोहराया न जाए। वे कहते हैं कि बेटी को सामान लाने बाहर भेजने या स्कूल भेजने में घबराहट होती है।

लड़कियों के साथ न्याय होने का अर्थ यह नहीं है कि उनके साथ गलत हो, उनकी हत्या हो जाए और फिर अपराधी को दंडित कर दिया जाए। असली इन्साफ का अर्थ है – उनके साथ बुरा व्यवहार हो ही ना, यदि कोई खराब व्यवहार करे तो उसे तत्काल रोक दिया जाए।

हमारे संविधान की उद्देशिका में लिखा है- “हम, भारत के लोग, समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास और धर्म की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर में समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”

हमें संविधान की इस उद्देशिका में मीनाक्षी को खोजना चाहिए और यह देखना चाहिए कि गलती कहां हो रही है हम सबसे?

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