बौद्ध धर्म की दृष्टि में संवैधानिक मूल्‍य

बौद्ध धर्म की दृष्टि में संवैधानिक मूल्‍य

बाबा साहेब अम्बेडकर संवैधानिक मूल्यों के माध्यम से एक सामंजस्यपूर्ण भारतीय राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे। उन्हें अहसास था कि यदि समाज के अंतर्निहित विरोधाभासों से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा गया तो संविधान के उच्‍च आदर्श अधूरे रह जाएंगे।

चुनाव रिपोर्टिंग और संवैधानिक मूल्य

चुनाव रिपोर्टिंग और संवैधानिक मूल्य

सवाल उठता है कि चुनाव‍ रिपोर्टिंग को क्या संवैधानिक मूल्यों के हिसाब किया और परखा जा सकता है? क्या यह संभव है और नैतिक दृष्टि से यह कितना जरूरी है? खासकर तब कि जब चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से उसके समाप्त होने का पूरा ताना बाना आजकल बाजार की शक्तियों से संचालित होने लगा है।

चुनावी बॉन्ड असंवैधानिक क्यों?

चुनावी बॉन्ड असंवैधानिक क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने एक ऐतिहासिक निर्णय में चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया है। न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया है कि वह इस बॉन्ड के बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक करे।

आ एआई मुझे मार

आ एआई मुझे मार

मशीनी होती जिंदगी अब मुहावरा भर नहीं रह गया है। एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के आने के बाद अब इंसान का मशीन बन जाना और मशीन का इंसान बन जाना संभव है। दूसरी तरफ, एआई केे लाभ भी गिनाए जा रहे हैं। यानी, यह केवल खतरा नहीं है बल्कि अवसर भी है।

स्त्री शिक्षा, समाज सुधार और मूल्यों के लिए संघर्ष

स्त्री शिक्षा, समाज सुधार और मूल्यों के लिए संघर्ष

उन्नीसवीं सदी में भारतीय महिलाओं की शिक्षा और सशक्तीकरण की बात आने पर सावित्रीबाई फुले का जिक्र लाजिमी है। सावित्रीबाई फुले को याद करना इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि यह समय समता, समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुता जैसे संवैधानिक मूल्यों को देश और समाज में पुन: स्थापित करने का भी है। सावित्रीबाई फुले के विचार इस सिलसिले में बेहद मददगार साबित हो सकते हैं।

संवैधानिक मूल्यों की रक्षा में मीडिया की भूमिका

संवैधानिक मूल्यों की रक्षा में मीडिया की भूमिका

कायदे से प्रेस स्वतंत्रता के मामले में भारत का नाम दुनिया के पहले पांच देशों में होना चाहिए था, लेकिन हो उलटा रहा है। हम 11 स्थान और नीचे चले गए हैं। प्रेस और प्रकारांतर से मीडिया की जुबान का इस तरह कैद होना अंतत: संवैधानिक मूल्यों का ही हनन है और संवैधानिक मूल्य ही भारत राष्ट्र के कायम रहने की गारंटी है। मीडिया के पैरों का हिलना संविधान के पायों का डगमगाना है।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अभाव में लोकतंत्र भी पूर्ण स्वतंत्र नहीं

व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अभाव में लोकतंत्र भी पूर्ण स्वतंत्र नहीं

न्याय का अर्थ है नई दिशा की ओर बढ़ना ना कि अतीत की परिस्थितियों की ओर वापस लौटना। क्या हमें ऐसा होता दिखाई दे रहा है? वर्तमान परिस्थितियों तो जैसे प्रतिशोध…

आजादी, समता व बंधुता का अलग-अलग अस्तित्‍व नहीं

आजादी, समता व बंधुता का अलग-अलग अस्तित्‍व नहीं

हमारे संविधान में बंधुता और न्याय शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये कानून से अधिक हमारे समाज से ताल्लुक रखते हैं। इस आलेख में संविधान में इन शब्दों के प्रवेश…

संविधान पर लगे आरोपों का सीधे सामना करने का वक्‍त

संविधान पर लगे आरोपों का सीधे सामना करने का वक्‍त

मारी आजादी को 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं। हमारे सामने यह चुनौती है कि हम अपने जीवन में संवैधानिक मूल्यों को किस प्रकार अपनाएं। यह आवश्यक है कि संविधान पर…