14 अगस्त 1947: आधी रात की आज़ादी और संविधान सभा

14 अगस्त 1947: आधी रात की आज़ादी और संविधान सभा

चौदह अगस्त 1947 की मध्य रात्रि देश आज़ाद हुआ। यह दो सदियों की लंबी गुलामी के बाद मिली आज़ादी थी। एक नया दिन आने को था। अंधकार से भरी दो सदियों के बाद स्वतंत्रता का सूर्य उदय हो रहा था। वह दिन भारत की संविधान सभा के लिए भी महत्वपूर्ण था।

बाइस जुलाई: तिरंगे को अपनाने का दिन

बाइस जुलाई: तिरंगे को अपनाने का दिन

भारत की संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को औपचारिक रूप से तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया था। 23 जुलाई को इसे पहली बार औपचारिक रूप से फहराया गया। राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण की पूरी कहानी बहुत दिलचस्प है। 1857 के पहले स्वतंत्रता आंदोलन के पहले देश की विभिन्न रियासतों और राज्यों के अपने-अपने ध्वज थे। विडंबना ही है कि संपूर्ण भारत को उसका पहला ध्वज साम्राज्यवादी अंग्रेजी शासन ने दिया। नीले रंग के इस झंडे में बांयी ओर ऊपर यूनियन जैक बना था जबकि दाहिने हिस्से के बीच में ब्रिटिश क्राउन में स्टार ऑफ इंडिया का चित्र बना था।

देश का विभाजन, संविधान और नेहरू

देश का विभाजन, संविधान और नेहरू

ऐतिहासिक प्रमाणों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल समेत उस दौर के सभी प्रमुख नेता भारत के विभाजन को टालना चाहते थे। परंतु हालात के मुताबिक वे सभी इसे लेकर अलग-अलग नज़रिया भी रखते थे। कुछ मसलों पर न तो सहमति बन पा रही थी और न ही असहमति। मुस्लिम लीग को स्वतंत्र भारत में सरकार बनाने का आमंत्रण भी ऐसा ही एक मसला था।

लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव, संविधान और नेहरू

लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव, संविधान और नेहरू

नेहरू जिस भारत का स्वप्न देखते थे, उसमें टुकड़ों में बंटे हुए भारत के लिए कोई जगह नहीं थी। उनके मन में पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक एक भारत की छवि थी…

स्वतंत्रता में विभाजन की सियासत

स्वतंत्रता में विभाजन की सियासत

देश आज़ाद हुआ लेकिन विभाजन की विभीषिका हमेशा के लिए हमारे अंत:करण पर चस्पा हो गयी। एक तरफ देश अंग्रेजों की गुलामी से निजात पाने के लिए प्रयासरत था…

राजा-महाराजाओं के विशेषाधिकार और उनका अंत

राजा-महाराजाओं के विशेषाधिकार और उनका अंत

स्वतंत्र भारत में राजाओं-महाराजाओं और नवाबों आदि को मिले विशेष अधिकारों को लेकर आम जनमानस में कई कहानियां प्रचलित हैं। प्रिवी पर्स यानी निजी थैली…

आदिवासी और भारत का संविधान

आदिवासी और भारत का संविधान

उपनिवेशवाद के विरुद्ध और अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष करने वाले आदिवासी समुदायों को न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में जरूरी तवज्जो नहीं मिली…