संविधान सभा में डॉ. अम्बेडकर का अंतिम संबोधन

संविधान सभा में डॉ. अम्बेडकर का अंतिम संबोधन

डॉ. अम्बेडकर ने कहा कि वह यह नहीं कहते कि संसदीय लोकतंत्र का सिद्धांत राजनीतिक लोकतंत्र के लिए एकमात्र आदर्श व्यवस्था है। संविधान सभा में हुई सार्थक चर्चाओं को लेकर अम्बेडकर की राय हमें जरूर यह बताती है कि वह इस व्यवस्था के हामी थे।

डॉ. बी. आर. अम्बेडकर और संविधान

डॉ. बी. आर. अम्बेडकर और संविधान

संविधान के साथ डॉ. बी. आर. अम्बेडकर का नाम इस प्रकार जुड़ा हुआ है कि दोनों को एक दूसरे के बिना अधूरा कहा जा सकता है। उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता भी कहा जाता है। अक्सर यह सुनने में आता है कि भारत के संविधान का निर्माण डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने किया। परंतु क्या यह पूरा सच है?

क्यों जरूरी है संविधान निर्माण की समझ?‌

क्यों जरूरी है संविधान निर्माण की समझ?‌

आज पूरा देश संविधान दिवस मना रहा है। संविधान दिवस यानी 26 नवंबर का दिन। सन 1949 में आज ही के दिन हमने अपने संविधान को अपनाया था। वही संविधान जो वर्षों तक चली बैठकों, सघन बहसों और वाद-विवाद के बाद हमारे सामने आया था।

स्वतंत्र भारत का गांधीवादी संविधान

स्वतंत्र भारत का गांधीवादी संविधान

श्रीमन नारायण अग्रवाल ने गांधी के रामराज्य को परिभाषित करते हुए लिखा है, ‘‘धार्मिक आधार पर इसे धरती पर ईश्वर के शासन के रूप में समझा जा सकता है। राजनीतिक तौर पर इसका अर्थ है एक संपूर्ण लोकतंत्र जहां रंग, नस्ल, संपत्ति, लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न हो। जहां जनता का शासन हो। तत्काल और कम खर्च में न्याय मिले। उपासना की, बोलने की और प्रेस को आजादी मिले और यह सब आत्मनियमन से हो। ऐसा राज्य सत्य और अहिंसा पर निर्मित हो और वहां ग्राम और समुदाय प्रसन्न और समृद्ध हों।’’

14 अगस्त 1947: आधी रात की आज़ादी और संविधान सभा

14 अगस्त 1947: आधी रात की आज़ादी और संविधान सभा

चौदह अगस्त 1947 की मध्य रात्रि देश आज़ाद हुआ। यह दो सदियों की लंबी गुलामी के बाद मिली आज़ादी थी। एक नया दिन आने को था। अंधकार से भरी दो सदियों के बाद स्वतंत्रता का सूर्य उदय हो रहा था। वह दिन भारत की संविधान सभा के लिए भी महत्वपूर्ण था।

बाइस जुलाई: तिरंगे को अपनाने का दिन

बाइस जुलाई: तिरंगे को अपनाने का दिन

भारत की संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को औपचारिक रूप से तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया था। 23 जुलाई को इसे पहली बार औपचारिक रूप से फहराया गया। राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण की पूरी कहानी बहुत दिलचस्प है। 1857 के पहले स्वतंत्रता आंदोलन के पहले देश की विभिन्न रियासतों और राज्यों के अपने-अपने ध्वज थे। विडंबना ही है कि संपूर्ण भारत को उसका पहला ध्वज साम्राज्यवादी अंग्रेजी शासन ने दिया। नीले रंग के इस झंडे में बांयी ओर ऊपर यूनियन जैक बना था जबकि दाहिने हिस्से के बीच में ब्रिटिश क्राउन में स्टार ऑफ इंडिया का चित्र बना था।

चुनावी बॉन्ड असंवैधानिक क्यों?

चुनावी बॉन्ड असंवैधानिक क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने एक ऐतिहासिक निर्णय में चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया है। न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया है कि वह इस बॉन्ड के बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक करे।

वाजिब थीं जयपाल सिंह मुंडा की शिकायतें

वाजिब थीं जयपाल सिंह मुंडा की शिकायतें

देश की आज़ादी की लड़ाई के दौर में जहां देश और समाज के सभी प्रमुख मुद्दों पर खुलकर बात की जा रही थी वहीं आश्चर्य की बात है कि आदिवासियों को लेकर बहुत कम बातचीत या विमर्श हो रहा था। भारत को ओलंपिक में हॉकी का पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाली टीम के कप्तान रहे आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने इस विषय पर संविधान सभा में जो कुछ कहा वह एक कड़वी हकीकत है।

देश का विभाजन, संविधान और नेहरू

देश का विभाजन, संविधान और नेहरू

ऐतिहासिक प्रमाणों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल समेत उस दौर के सभी प्रमुख नेता भारत के विभाजन को टालना चाहते थे। परंतु हालात के मुताबिक वे सभी इसे लेकर अलग-अलग नज़रिया भी रखते थे। कुछ मसलों पर न तो सहमति बन पा रही थी और न ही असहमति। मुस्लिम लीग को स्वतंत्र भारत में सरकार बनाने का आमंत्रण भी ऐसा ही एक मसला था।