आलोक का सपना और हमारा संविधान
देश के कई प्रतिभाशाली बच्चों की प्रतिभा उचित अवसर और संसाधनों के अभाव में दम तोड़ देती है। वह हमारा संविधान ही है जो सभी नागरिकों को समान अवसर देता है। वह केवल सरकार और नागरिक के रिश्तों को परिभाषित नहीं करता बल्कि समाज के सभी वर्गों के सर्वांगीण विकास पर भी पूरा जोर देता है। अगर सरकारेंं कोई अतिरिक्त प्रयास किए बिना केवल संविधान के प्रावधानों को ही उनकी मूल भावना के साथ लागू कर दें तो हमारी कई समस्याएं समाप्त हो सकती हैं।
संविधान संवाद टीम
‘जीवन में संविधान’ पुस्तक से:
आलोक प्रसाद ने जब देश की शीर्षस्थ सेवाओं में शुमार की जाने वाली लोकसेवा आयोग की अंतिम परीक्षा पास की तो उनके गृह राज्य में केवल उनकी ही चर्चा होने लगी। आलोक एक गरीब दलित परिवार से आते थे। वह बचपन से ही पढ़ने में तेज थे और हमेशा ही मेरिट में स्थान बनाते थे। प्रतिभाशाली आलोक संसाधनों के मामले में भाग्यशाली नहीं थे। उनके पिता रिक्शा चलाते थे और उनकी मां पास की कॉलोनियों में चौका-बर्तन किया करती थीं।
आलोक में पढ़ने की लगन इतनी ज्यादा थी कि कभी-कभी जब बिल जमा न होने के कारण उनके घर की बिजली काट दी जाती तो वह पढ़ने के लिए पास स्थित रेलवे स्टेशन पर चले जाते थे ताकि प्लेटफॉर्म की रोशनी में पढ़ सकें।
आलोक के माता-पिता ने उनका भरपूर साथ दिया। उनका बस एक ही सपना था कि उनके बेटे को उस अभाव और गरीबी में नहीं जीना पड़े जिसमें उन्होंने अपना बचपन बिताया था और जिससे वे अब तक निकल नहीं पाए थे। आज आलोक के नाम का उदाहरण देश के लाखों गरीब बच्चों के लिए प्रेरणा बना हुआ है।
निश्चित रूप से उनकी इस कामयाबी में उनकी लगन, माता-पिता की सपने देखने की क्षमता और भारतीय संविधान के उन प्रावधानों का भरपूर योगदान है जिनकी बदौलत एक गरीब और दलित परिवार के बेटे को अपना सपना पूरा करने का मौका मिला।
हमारा संविधान नागरिकों को जीवन जीने का सलीका भी सिखाता है और उन्हें इसका उद्देश्य भी देता है। संविधान की प्रस्तावना का पहला शब्द ‘हम’ इसकी मूल भावना को स्पष्ट करता है। हमारा संविधान समाज के सभी वर्गों के सर्वांगीण विकास पर जोर देता है। वह यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को समुचित अवसर प्राप्त हों।
आलोक कहते हैं कि वे सरकारी स्कूल से पढ़ाई करने के बावजूद अगर इस मुकाम तक पहुंच सके हैं तो यह देश के संविधान की बदौलत संभव हो सका है। वे कहते हैं कि संविधान ने वंचितों, दलितों, महिलाओं को सम्मान के साथ जीने का रास्ता दिखाया है, वरना तो देश में अभी भी कई जगहों से ऐसी खबरें आती हैं जिन्हें पढ़कर आश्चर्य होता है कि इन तबकों को इंसान भी समझा जाता है या नहीं!
आलोक की यह समझ आशा जगाती है कि वे एक संवेदनशील प्रशासनिक अधिकारी के रूप में इन तबकों की बेहतरी के लिए काम करेंगे। क्या यह सफलता अकेले आलोक की है? या इसमें उनके माता-पिता और भारतीय संविधान का भी कुछ योगदान है?
आलोक तथा उन जैसे अन्य बच्चों की राह क्यों अवरुद्ध हो जाती है? शिक्षा का अधिकार लागू होने के बावजूद बड़ी तादाद में बच्चों को स्कूली पढ़ाई बीच में ही क्यों छोड़नी पड़ती है? देश का संविधान इतना बेहतर है कि अगर केवल उसके प्रावधानों को सही ढंग से लागू कर दिया जाए तो ढेर सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है। हमारा संविधान इन बच्चों की किस प्रकार मदद करता है?