संविधान संवाद टीम

चौदह अगस्त 1947 की रात 11 बजे जब संविधान सभा बैठी तो इतिहास एक नई करवट लेने को था। एक नए देश का निर्माण हो रहा था और ऐसे में यह महत्वपूर्ण था कि संविधान निर्माता आखिर नए बन रहे भारत के बारे में क्या विचार रखते थे।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का संबोधन

सबसे पहले संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा, “अपने इतिहास की इस पवित्र घड़ी में जब अनेक वर्षों के संघर्ष के बाद हम देश का शासन अपने हाथ में ले रहे हैं, आइए उस सर्वशक्तिमान शक्ति को विनम्रतापूर्वक धन्यवाद दें जो मनुष्यों और राष्ट्रों के भाग्य को आकार देती है और उन सभी ज्ञात और अज्ञात पुरुषों और महिलाओं की सेवाओं और बलिदान को कृतज्ञता के साथ याद करें जो चेहरों पर मुस्कान लिए फांसी पर चढ़ गए या छाती पर गोलियां खाईं। जिन्होंने अंडमान की काल कोठरियों में जिंदा ही मृत्यु का अनुभव किया या जेलों में जीवन बिताया। जिन्होंने देश में अपमानजनक जीवन जीने के बजाय विदेशों में स्वैच्छिक निर्वासन को प्राथमिकता दी। जिन्होंने न केवल धन-संपत्ति गंवाई बल्कि अपने प्रियजनों से भी नाता तोड़ लिया ताकि वे उस महान उद्देश्य को पाने के लिए खुद को समर्पित कर सकें जो आज हमारे समक्ष है।”

महात्मा गांधी का योगदान

इसके बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने महात्मा गांधी के योगदान को याद करते हुए कहा कि वह एक प्रकाश स्तंभ, मार्गदर्शक और दार्शनिक के रूप में हमारे बीच हैं। उन्होंने कहा कि गांधी ने हमें हताशा और निराशा से उबारकर हमारे भीतर न्याय के लिए खड़े होने और स्वतंत्रता के जन्मसिद्ध अधिकार को पाने की भावना पैदा की।

उन्होंने दुनिया के देशों को आश्वस्त किया कि भारत सभी के साथ मित्रता और सौहार्द का रिश्ता रखेगा। उन्होंने कहा कि भारत की एक ही महत्वाकांक्षा है और वह है सभी के लिए स्वतंत्रता और मानव जाति के बीच शांति स्थापना में अपना योगदान देना।

अल्पसंख्यकों को आश्वस्ति


उन्होंने अल्पसंख्यकों को आश्वासन देते हुए कहा कि उनके साथ हमेशा उचित और न्यायपूर्ण व्यवहार किया जाएगा तथा किसी तरह का भेदभाव नहीं होगा। उनके धर्म, संस्कृति और भाषा की रक्षा की जाएगी और उन्हें नागरिकता के सभी अधिकार और विशेषाधिकार मिलेंगे तथा बदले में उनसे देश और उसके संविधान के प्रति वफादारी की उम्मीद की जाएगी।

पंडित नेहरू का संबोधन

पंडित जवाहर लाल नेहरू: “अध्यक्ष महोदय, कई वर्ष पहले हमने भाग्य से एक वादा किया था। हमने एक प्रतिज्ञा ली थी, एक व्रत लिया था। अब उसे निभाने का समय आ गया है। हम लगभग स्वतंत्र हो चुके हैं। ऐसे समय में यह उचित ही है कि हम भारत और उसके लोगों की सेवा के लिए एक नई प्रतिज्ञा, एक नई शपथ लें। कुछ ही क्षणों के बाद, सभा एक स्वतंत्र देश का प्रतिनिधित्व करेगी। इसलिए इस पर बहुत बड़ी जिम्मेदारियां हैं। यदि हम अपनी जिम्मेदारियों का महत्व नहीं समझेंगे, तो हम अपने कर्तव्यों का पूरी तरह से निर्वहन नहीं कर पाएंगे। मैं जो संकल्प आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं, वह उसी व्रत से संबंधित है। हमने एक चरण पूरा कर लिया है, और उसके लिए आज खुशियां मनाई जा रही हैं। हमारे हृदय में खुशी, कुछ गर्व और संतोष है। लेकिन हम जानते हैं कि पूरे देश में कोई खुशी नहीं है। हमारे दिलों में बहुत दुख है। दिल्ली से कुछ ही दूर, बड़े-बड़े शहर जल रहे हैं और उसकी तपिश हम तक भी पहुंच रही है। हमारी खुशी कभी पूरी नहीं हो सकती। इस समय हमें इन सबका डटकर सामना करना है। हमें शोर नहीं मचाना है और न ही परेशान होना है। जब सरकार की बागडोर हमारे हाथ में आ गई है, तो हमें सही तरीके से काम करना है। आमतौर पर देश बहुत खून-खराबे, आंसू बहाने और मेहनत के बाद अपनी आज़ादी हासिल करते हैं। हमारे देश में बहुत खून बहा है और वह भी बहुत दर्दनाक तरीके से। इसके बावजूद, हमने शांतिपूर्ण तरीके से आज़ादी हासिल की है। हमने दुनिया के सामने एक नई मिसाल कायम की है। हम अब आजाद हैं, लेकिन आज़ादी के साथ-साथ जिम्मेदारियां और बोझ भी आते हैं। हमें उनका सामना करना है और उन सभी पर विजय प्राप्त करनी है। आज़ादी पाने और विदेशी सरकार को हटाने का काम हमारे सामने था और वह अब पूरा हो गया है। परंतु विदेशी शासन को उखाड़ फेंकना ही सब कुछ नहीं है, जब तक कि हर भारतीय आज़ादी की हवा में सांस न ले और उसके दुख दूर न हो जाएं और उसकी मुश्किलें दूर न हो जाएं। हमारा काम अधूरा है। काम का एक बड़ा हिस्सा अभी भी पूरा होना बाकी है, और हम इसे पूरा करने का प्रयास करेंगे। बड़ी-बड़ी समस्याएं हमारे सामने हैं और उन्हें देखकर कभी-कभी हमारा दिल कांप उठता है, लेकिन फिर यह सोचकर कि हमने पहले भी कई बड़ी समस्याओं का सामना किया है और हम फिर से उनका सामना करेंगे, हमें हिम्मत मिलती है। अब जब हम स्वतंत्रता की दहलीज पर हैं, हमें याद रखना चाहिए कि भारत किसी एक पार्टी, समूह या जाति का नहीं है। यह किसी एक धर्म के अनुयाइयों का नहीं है। यह सभी का, हर धर्म और पंथ का देश है। हमने बार-बार परिभाषित किया है कि हमें किस प्रकार की स्वतंत्रता चाहिए। पहले प्रस्ताव में, जिसे मैंने पहले पेश किया था, यह कहा गया है कि हमारी स्वतंत्रता हर भारतीय को समान रूप से साझा करनी है। सभी भारतीयों के समान अधिकार होंगे, और उनमें से प्रत्येक को उस स्वतंत्रता में समान रूप से भाग लेना है। हम इसी तरह आगे बढ़ेंगे और जो भी आक्रामक होने की कोशिश करेगा, हम उसे रोक देंगे। अगर किसी पर अत्याचार होता है तो हम उसके साथ खड़े होंगे। अगर हम इस रास्ते पर चलते हैं तो हम बड़ी समस्याओं को हल करने में सक्षम होंगे, लेकिन अगर हम संकीर्ण सोच वाले हो गए तो हम उन्हें हल नहीं कर पाएंगे।”

इसके पश्चात चौधरी खलीकुज्जमां, डॉ. एस. राधाकृष्णन और एच.वी. कामथ जैसे संविधान सभा के प्रतिष्ठित सदस्यों ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद और नेहरू के वक्तव्यों के साथ-साथ स्वतंत्र हो रहे देश को लेकर अपने विचार प्रकट किए।

चौदह अगस्त की रात जैसे ही घड़ी में 12 बजे संविधान सभा के अध्यक्ष ने एक शपथ पढ़ी और सदस्यों ने उसे पहले हिंदुस्तानी और फिर अंग्रेजी में दोहराया। वह शपथ थी:

“इस पवित्र अवसर पर, जब भारत के लोगों ने कष्ट और बलिदान के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त की है, मैं, भारत की संविधान सभा का सदस्य, पूरी विनम्रता के साथ भारत और उसके लोगों की सेवा के लिए अपने आपको समर्पित करता हूं, ताकि यह प्राचीन भूमि विश्व में अपना उचित और सम्मानित स्थान प्राप्त कर सके और विश्व शांति और मानवता के कल्याण को बढ़ावा देने में अपना पूर्ण और स्वेच्छा से योगदान दे सके।”


इसके पश्चात सभा ने यह प्रस्ताव स्वीकृत किया कि वायसराय को यह सूचना दी जाए कि संविधान सभा ने भारत के शासन की शक्ति ग्रहण कर ली है। संविधान सभा ने इस सिफारिश का भी समर्थन किया कि लॉर्ड माउंटबेटन 15 अगस्त 1947 से भारत के गवर्नर जनरल होंगे।

राष्ट्रीय ध्वज की प्रस्तुति

श्रीमती हंसा मेहता ने भारत की महिलाओं की ओर से देश को राष्ट्रीय ध्वज सौंपते हुए कहा, “अध्यक्ष महोदय, श्रीमती सरोजिनी नायडू की अनुपिस्थिति में, भारत की महिलाओं की ओर से, आपके माध्यम से यह ध्वज राष्ट्र को सौंपना मेरे लिए गौरव की बात है। मेरे पास लगभग सौ प्रमुख महिलाओं की सूची है जिन्होंने इस समारोह से जुड़ने की इच्छा व्यक्त की है। सैकड़ों अन्य महिलाएं हैं जो समान रूप से इस समारोह में भाग लेना चाहेंगी। यह उचित ही है कि इस प्रतिष्ठित सदन पर फहराने वाला यह पहला झंडा भारत की महिलाओं की ओर से एक उपहार होना चाहिए। हमने भगवा रंग धारण किया है, हमने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी है, कष्ट सहे हैं और बलिदान दिया है। हमने आज अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। अपनी स्वतंत्रता के इस प्रतीक को प्रस्तुत करते हुए, हम एक बार फिर राष्ट्र को अपनी सेवाएं अर्पित करते हैं। हमारे पास बनाए रखने के लिए महान परंपराएं हैं, जिन परंपराओं ने अतीत में भारत को इतना महान बनाया यह झंडा उस महान भारत का प्रतीक हो और हमेशा ऊंचा रहे तथा आज दुनिया के सामने मौजूद उस खतरे को दूर करने में रोशनी की तरह काम करे। यह उन लोगों के लिए खुशियां लेकर आए जो इसकी सुरक्षा में रहते हैं।”

चौदह अगस्त की रात संविधान सभा की इन कुछ प्रमुख गतिविधियों के बाद सभा को 15 अगस्त की सुबह 10 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

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