संविधान बोध और संवैधानिक नैतिकता
यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या बिना संविधान बोध और संवैधानिक नैतिकता के भारत वांछित प्रगति हासिल कर सकता है? क्या बिना इसके आधुनिक भारत का बोध सुनिश्चित किया जा सकता है? देश की आर्थिक और सामरिक शक्ति की बात हो रही है, अर्थव्यवस्था को पांच लाख करोड़ डॉलर तक पहुंचाने की बात की जा रही है, क्या वैमनस्यता, हिंसा, अवसाद, द्वेष के फैलाव और लोकतांत्रिक अवमूल्यन के बीच यह लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा?