सवाल करना जानलेवा हो सकता है!
कानपुर के रहने वाले कारोबारी मनीष गुप्ता कारोबार और एक मित्र से मिलने के उद्देश्य से 27 सितंबर 2021 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर पहुंचे थे। मनीष के साथ दो और मित्र हरवीर सिंह और प्रदीप सिंह भी आए थे। दोस्तों के मुताबिक गोरखपुर पुलिस की एक टीम रात करीब 12 बजे जांच के लिए होटल पहुंची और मनीष और उनके मित्रों से अपना पहचान पत्र दिखाने को कहा। उनके मित्रों ने अपनी आईडी दिखा दी जबकि मनीष ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि आधी रात के बाद जांच करने का कौन-सा तरीका है। क्या वे लोग आतंकवादी लगते हैं?
संविधान संवाद टीम
‘जीवन में संविधान’ पुस्तक से:
कानपुर के रहने वाले कारोबारी मनीष गुप्ता कारोबार और एक मित्र से मिलने के उद्देश्य से 27 सितंबर 2021 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर पहुंचे थे। मनीष के साथ दो और मित्र हरवीर सिंह और प्रदीप सिंह भी आए थे। दोस्तों के मुताबिक गोरखपुर पुलिस की एक टीम रात करीब 12 बजे जांच के लिए होटल पहुंची और मनीष और उनके मित्रों से अपना पहचान पत्र दिखाने को कहा। उनके मित्रों ने अपनी आईडी दिखा दी जबकि मनीष ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि आधी रात के बाद जांच करने का कौन-सा तरीका है। क्या वे लोग आतंकवादी लगते हैं?
मनीष के मित्रों का आरोप है कि मनीष के इतना कहने के बाद पुलिसकर्मियों ने उन्हें कमरे से बाहर निकाल दिया और मनीष को बुरी तरह पीटा।
पुलिस ने अपने पहले बयान में कहा था कि यह एक हादसा था और गिरने से मनीष के माथे पर चोट लगी जिससे उनकी मौत हो गई। लेकिन बाद में जब मनीष की पत्नी मीनाक्षी ने मामले को सोशल मीडिया पर उछाला और मीडिया का दबाव बना तब हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया।
मनीष के मित्र प्रदीप ने मीडिया को पूरा घटनाक्रम बताया, हम एक ही कमरे में ठहरे थे। रात करीब सवा 12 बजे का वक्त था, जब हमारे कमरे का दरवाजा पुलिसकर्मियों ने खटखटाया। पुलिस ने कहा कि ये एक रुटीन चेकअप है। हरवीर ने दरवाजा खोला था और पुलिस के कहने पर मेरे और अपने दस्तावेज दिखा दिए थे। लेकिन मनीष ने पुलिस से कहा कि ये समय नहीं है किसी को जगाने का, हमारे दस्तावेज रिसेप्शन पर जमा हैं, आप वहां से भी देख सकते थे।
प्रदीप सिंह के मुताबिक मनीष गुप्ता के इस जवाब से पुलिस दल का नेतृत्व कर रहे स्थानीय थाने के एसएचओ जगत नारायण सिंह भड़क गए और कहा कि तुम पुलिस को उसका काम सिखाओगे। इसके बाद मनीष की पिटाई की गई जिससे उनकी मौत हो गई।
वहीं घटना के बाद जारी बयान में गोरखपुर के एसएसपी विपिन टाडा ने कहा था अपराधियों की चेकिंग के दौरान रामगढ़ताल थाने की पुलिस एक होटल में गई। वहां एक कमरे में तीन अलग-अलग शहरों से आए तीन संदिग्ध युवक ठहरे थे। इस सूचना पर पुलिस होटल मैनेजर को साथ लेकर कमरे में गई, जहां हड़बड़ाहट में एक युवक को कमरे में गिरने से चोट लग गई। दुर्घटनावश हुई इस घटना के बाद पुलिस ने तत्काल होटल मैनेजर को साथ लेकर युवक को अस्पताल में भर्ती करवाया, जहां उसका इलाज हुआ। बीआरडी अस्पताल में इलाज के दौरान युवक की मौत हो गई।
स्थानीय पत्रकारों के अनुसार होटल के कमरे की चाबी पुलिस ने अपने पास रखी और मनीष की मौत के बाद कमरे को पूरी तरह साफ करवा दिया गया। जबकि एक आम नागरिक को भी इतना पता होता है कि क्राइम सीन के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए।
मनीष की पत्नी मीनाक्षी की सजगता से यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और पुलिस को अपने ही लोगों पर कार्रवाई करनी पड़ी। अंतिम जांच में क्या निकलता है यह देखना होगा, लेकिन एसएसपी विपिन टाडा के बयान से इतना तय है कि अगर यह मामला मीडिया में नहीं उछला होता तो पुलिस इस प्रकरण को दबा देती और बहुत संभव है कि मनीष को ही दोषी ठहरा दिया जाता।
कुख्यात अपराधी विकास दुबे को मध्य प्रदेश के उज्जैन से पकड़कर ले जाते वक्त उत्तर प्रदेश पुलिस की गाड़ी पलटी थी जिसके बाद कथित रूप से फरार होने की कोशिश कर रहे विकास दुबे को पुलिस ने मुठभेड़ में मार दिया था। उस वक्त मीडिया के एक बड़े तबके और आम जनता ने भी पुलिस के इस कारनामे को तत्काल न्याय की तरह देखते हुए पुलिस की खूब सराहना की थी।
बीते कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश पुलिस या देश के अन्य हिस्सों में भी पुलिस ने कथित मुठभेड़ों में बड़ी संख्या में अपराधियों को मारा है। लेकिन ऐसी एक्स्ट्रा ज्युडिशियल किलिंग (गैर-न्यायिक हत्या) के मामलों को वैधता देने से ही पुलिस बलों का साहस बढ़ता है और फिर मनीष गुप्ता हत्याकांड जैसे मामले सामने आते हैं।
किसी भी होटल में रुके अतिथि का कमरा उसकी निजी जगह होती है। पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि वह बिना किसी ठोस सुराग या कारण के कुसमय अतिथि के कमरे में प्रवेश करे। इस मामले में पुलिस ने प्रत्यक्ष तौर पर अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया। पुलिस खुद को इस कदर जवाबदेही से परे मानने लगी है कि एक आम नागरिक द्वारा किए गए साधारण-से सवाल से बौखलाकर उसने उसकी हत्या कर दी।
मनीष ने पुलिस से कहा था कि ये समय नहीं है किसी को जगाने का, हमारे दस्तावेज रिसेप्शन पर जमा हैं, आप वहां से भी देख सकते थे। इस जवाब में ऐसा क्या है कि पुलिस ने उन्हें इतना पीटा कि उनकी जान चली गई।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 कहता है कि राज्य, भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समता से या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 एक मौलिक अधिकार है, जो भारत के प्रत्येक नागरिक को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त अन्य मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर करने का अधिकार देता है।