एक अधिनियम जिसने दी मिशनरी को भारत आने की इजाजत
जब संविधान बन रहा था, तब आर्थिक, राजनीतिक-सामाजिक, कूटनीतिक तमाम संदर्भों में बेहद कठिन हालात थे। उपनिवेशकाल से लेकर स्वतंत्रता तक, भारत किन-किन विधानों/कानूनों के उतार-चढ़ावों से गुजरा है यह जान कर हम संविधान के निर्माण प्रक्रिया तथा उसके महत्व को बूझ पाएंगे। चार्टर अधिनियम 1813 और इस बीस साल बाद आए चार्टर अधिनियम 1833 ने ब्रिटिश राज्य को अधिक ताकतवर बना दिया।
भारत के संविधान को जानने के लिए कुछ परिस्थितियों को समझना बेहद जरूरी है। जब संविधान बन रहा था, तब आर्थिक, राजनीतिक-सामाजिक, कूटनीतिक तमाम संदर्भों में बेहद कठिन हालात थे। उपनिवेशकाल से लेकर स्वतंत्रता तक, भारत किन-किन विधानों/कानूनों के उतार-चढ़ावों से गुजरा है यह जान कर हम संविधान के निर्माण प्रक्रिया तथा उसके महत्व को बूझ पाएंगे। चार्टर अधिनियम 1813 और इस बीस साल बाद आए चार्टर अधिनियम 1833 ने ब्रिटिश राज्य को अधिक ताकतवर बना दिया।
1. चार्टर अधिनियम, 1813
- भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के काम और मौजूदगी की समय अवधि को 20 वर्षों के लिए बढ़ाने के लिए ब्रिटिश संसद में यह अधिनियम पारित हुआ।
- भारत में ब्रिटेन के अन्य व्यापारियों को व्यापार के लिए प्रवेश देने के लिए इसमें प्रावधान किए गए।
- इसी कानून के अंतर्गत ईसाई मिशनरियों को भारत आने और धार्मिक गतिविधियां करने की इजाज़त दी गई।
- यह कानून वर्ष 1858 तक प्रभावी रहा।
2. चार्टर अधिनियम, 1833
- बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त कर दिया गया।
- भारत में केन्द्रीय विधान मंडल व्यवस्था की छोटी सी, लेकिन पहली शुरुआत चार्टर अधिनियम, 1833 से हुई। इस अधिनियम के द्वारा भारत में ब्रिटिश क्षेत्रों के लिए एक विधान परिषद की स्थापना का प्रावधान किया गया।
- अब गवर्नर जनरल की सरकार को भारत सरकार कहा जाने लगा। गवर्नर जनरल की परिषद के कामों में कानून बनाने की बैठकों और कार्यपालिका की बैठकों में भेद किया गया।
- इसी अधिनियम के द्वारा परिषद में एक और विधायी सदस्य शामिल किया गया और इस पद पर लॉर्ड मैकाले की नियुक्ति हुई।