‘संविधान संवाद’ के बारे में
“किसी संविधान का सफल होना केवल उन लोगों पर निर्भर नहीं करता, जो उसे व्यवहार में लाते हैं बल्कि उन लोगों पर निर्भर करता है जिनके लिए वह व्यवहार में लाया जाता है. हमारे देशवासियों का चरित्र इसी संविधान की कसौटी पर कसा जाएगा।”
– जदुवंश सहाय, संविधान सभा के सदस्य, संविधान सभा के सदस्य (22 नवम्बर 1949)
हम भारत के लोग… इस ‘हम’ बोध के साथ आरंभ हुई भारतीय संविधान की प्रस्तावना यदि संविधान की आत्मा है तो यह ‘हम’ इस संविधान के कार्य तत्व है जिनके जिम्मे इसके निर्वहन का दायित्व है। 26 नवम्बर 1949 को भारत ने अपना संविधान अंगीकार किया था तब हम भारत के लोगों पर एक दायित्व आया था कि हम संसद द्वारा पारित संविधान को पूर्ण निष्ठा से लागू करें और उसका पालन करें। वह संविधान जिसने केवल अपने देश और यहां के प्रत्येक निवासी के कल्याण के प्रावधान ही नहीं किए बल्कि समूचे एशिया महाद्वीप, विश्व और अखिल प्रकृति के संरक्षण के सूत्र समाहित किए। लोकतंत्र की सात दशकों की यात्रा में पाया गया है कि संविधान के पालन को जितना विस्तार लेना था उतना तो ठीक हम नागरिकों में उसकी समझ भी स्पष्ट नहीं कर पाए हैं। विडंबना यह कि संविधान की नींव पर स्वतंत्रता, समानता, न्याय, बंधुता, समता का विस्तृत फलक रचने के बदले संविधान की भूमिका आरंभिक शिक्षा के कुछ पाठ, प्रतियोगी परीक्षाओं के कुछ प्रश्नों, वैधानिक कार्यवाहियों और शपथ ग्रहण की प्रक्रिया तक सिमट कर रह गई है।
सरकारों को जो करना था उन्होंने किया, मगर बतौर भारतीय नागरिक हमारे प्रयत्न भी कम ही रहे हैं। जिस संविधान पर भारत की व्यवस्था टिकी हुई है, उसके बारे में, उसके निर्माण के बारे में, उसके पालन के बारे में भारत का समाज काफी हद तक अनभिज्ञ ही रहा है। संविधान को कानून की किताब मान लिया गया है जिसकी भाषा को जटिल कह कर उसके बारे में समझ के रास्ते लगभग बंद कर लिए गए हैं।
यह समय संविधान में दर्ज न्याय, बंधुता, प्रजातंत्र, समानता, स्वतंत्रता, जीवन के अधिकार के “सिद्धांतों” को खारिज करने का नहीं बल्कि इनके प्रति निष्ठा व्यक्त करने का समय है और इस समय में यह बहुत आवश्यक हो जाता है कि हम अतीत की गलियों से गुजरें और जाने कि किस विराट कल्पना के साथ संविधान सभा ने भारत के संविधान को तैयार किया है। इसकी बुनावट में किस तरह सबके लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुता और समता के ताने- बाने रचे गए हैं। यह एकदम सही समय है जब हम भारत के संविधान को जाने, समझें और संवैधानिक मूल्यों के पालन में स्व-अनुशासित हों।
इस उद्देश्य से ‘संविधान संवाद’ ने आकार लिया है।
संविधान की किताब में दर्ज शब्दों की आत्मा यदि इसके क्रियान्वयन में धड़कती है तो ‘संविधान संवाद’ इस स्पंदन को अनुभव करने की एक पहल है।
आइए, हम अपने संविधान को जाने और इसके पालन के प्रति अधिक दृढ़ हों।
संविधान संवाद का फलक
‘संविधान संवाद’ भारतीय संविधान की विकास गाथा को जानने, उसकी उद्देश्य को समझने तथा तय लक्ष्यों की प्राप्ति में हम नागरिकों के कर्तव्यों के बोध की एक पहल है। इसमें संविधान निर्माण की प्रक्रिया, इस प्रक्रिया के अनछुए पहलुओं को समझने के लिए आलेख होंगे, इस राह की चुनौतियों का जिक्र होगा तो वास्तविक दिशा दिखलाती आंखों देखी रिपोर्ट होंगी। सुधार के उपाय बताते विमर्श होंगे और हमें अपने संविधान के पालन की समझ देते कुछ सूत्र होंगे। यह सब पाठकों की भागीदारी के साथ संवाद के रूप में होगा।
हमारी कोशिश है कि संविधान निर्माण से जुड़ी संदर्भ सामग्री को मूल रूप से हम साभार यहां प्रस्तुत कर सकें। साथ ही, संविधान के प्रति हमारी समझ को बढ़ाने वाले विषय विशेषज्ञों के विचार हमारे दृष्टि को समृद्ध करेंगे। इसके साथ ही ‘संविधान संवाद’ शोध और दस्तावेजीकरण, सहभागी प्रशिक्षण और संवाद, प्रकाशन, फैलोशिप, फिल्म निर्माण जैसे बहुआयामी प्रयत्नों के माध्यम से संविधान को जानने, समझने और आत्मसात करने की कोशिश होगी।