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6 दिसंबर डॉ. बी.आर. अम्बेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस है। समाज का एक बड़ा तबका उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता मानता है। वहीं एक और बात बहुत प्रचलित है कि भारतीय संविधान विदेशी संविधानों की नकल है। ऐसा कहने वाले संविधान निर्माण में अम्बेडकर की भूमिका को कम करके दर्शाना चाहते हैं। ऐसे भ्रमों को स्वयं अम्बेडकर ने दूर किया है। आइए जानते हैं संविधान निर्माण में उनकी भूमिका और इससे जुड़ी उनकी चिंताओं के बारे में।

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चौदह अगस्त 1947 की मध्य रात्रि देश आज़ाद हुआ। यह दो सदियों की लंबी गुलामी के बाद मिली आज़ादी थी। एक नया दिन आने को था। अंधकार से भरी दो सदियों के बाद स्वतंत्रता का सूर्य उदय हो रहा था। वह दिन भारत की संविधान सभा के लिए भी महत्वपूर्ण था। आइए जानते हैं कि उस निर्णायक दिन देश की संविधान सभा में क्या कुछ महत्वपूर्ण घटित हुआ।

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बाबा साहेब अम्बेडकर संवैधानिक मूल्यों के माध्यम से एक सामंजस्यपूर्ण भारतीय राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे। उन्हें अहसास था कि यदि समाज के अंतर्निहित विरोधाभासों से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा गया तो संविधान के उच्‍च आदर्श अधूरे रह जाएंगे। यहीं पर बुद्ध की शिक्षाएं भारतीय समाज में अंतर्निहित विरोधाभासों का समाधान पाने के लिए एक मजबूत संदर्भ बिंदु बन जाती हैं।

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26 जनवरी वह दिन है जब 1950 में हमारे देश ने संविधान को अपनाया था और एक गणराज्य के रूप में अपनी नई यात्रा की शुरुआत की थी। उस समय तक देश का शासन भारत शासन अधिनियम के संशोधित स्वरूप के माध्यम से चल रहा था। भारतीय संविधान के 75वें वर्ष में प्रवेश के अवसर पर प्रस्तुत है संविधान सभा की बैठकों के अंतिम सप्‍ताह के महत्‍व को रेखांकित करता यह आलेख।

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भारतीय संविधान के निर्माण में उस दौर के तमाम अध्ययनशील और देशहित में सोचने वाले नेताओं एवं विद्वानों का योगदान था। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की भी देश के एकीकरण और संविधान के अहम प्रावधानों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका थी। बात चाहे रियासतों के एकीकरण की हो, सत्ता के लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की या लक्ष्य संबंधी प्रस्तावों के जरिये संविधान को उसका आधारभूत ढांचा मुहैया कराने की, नेहरू की भूमिका हर जगह सामने आती है।

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सर्वोच्च न्यायालय चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया है। न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को बॉन्ड के बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया है । काफी समय से चुनावी बॉन्ड के माध्यम से चुनाव प्रक्रिया को भ्रष्ट बनाने के आरोप लगाए जा रहे थे। इस दृष्टि से यह निर्णय दूरगामी प्रभाव वाला साबित हो सकता है।

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नागरिक चक्रम की कहानियां दरअसल एक ऐसे किशोर की कहानियां हैं जो नागरिक बनने की प्रक्रिया में है। वह यथास्थिति पर नहीं टिकता बल्कि जिज्ञासाओं के उत्तर खोजने का जतन करता है।

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विश्लेषण/Explanatory

  • वाजिब थीं जयपाल सिंह मुंडा की शिकायतें

    देश की आज़ादी की लड़ाई के दौर में जहां देश और समाज के सभी प्रमुख मुद्दों पर खुलकर बात की जा रही थी वहीं आश्चर्य की बात है कि आदिवासियों को लेकर बहुत कम बातचीत या विमर्श हो रहा था। भारत को ओलंपिक में हॉकी का पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाली टीम के कप्तान रहे आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने इस विषय पर संविधान सभा में जो कुछ कहा वह एक कड़वी हकीकत है।

  • 26 जनवरी: उन बहसों को याद करने का दिन

    26 जनवरी वह दिन है जब 1950 में हमारे देश ने संविधान को अपनाया था और एक गणराज्य के रूप में अपनी नई यात्रा की शुरुआत की थी। उस समय तक देश का शासन भारत शासन अधिनियम के संशोधित स्वरूप के माध्यम से चल रहा था। प्रस्तुत है संविधान सभा की बैठकों के अंतिम सप्‍ताह के महत्‍व को रेखांकित करता यह आलेख।

विचार/Opinion

  • बौद्ध धर्म की दृष्टि में संवैधानिक मूल्‍य

    बाबा साहेब अम्बेडकर संवैधानिक मूल्यों के माध्यम से एक सामंजस्यपूर्ण भारतीय राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे। उन्हें अहसास था कि यदि समाज के अंतर्निहित विरोधाभासों से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा गया तो संविधान के उच्‍च आदर्श अधूरे रह जाएंगे।

संविधान बोध/Constitution Knowledge

  • संविधान सभा में डॉ. अम्बेडकर का अंतिम संबोधन

    डॉ. अम्बेडकर ने कहा कि वह यह नहीं कहते कि संसदीय लोकतंत्र का सिद्धांत राजनीतिक लोकतंत्र के लिए एकमात्र आदर्श व्यवस्था है। संविधान सभा में हुई सार्थक चर्चाओं को लेकर अम्बेडकर की राय हमें जरूर यह बताती है कि वह इस व्यवस्था के हामी थे।

  • डॉ. बी. आर. अम्बेडकर और संविधान

    संविधान के साथ डॉ. बी. आर. अम्बेडकर का नाम इस प्रकार जुड़ा हुआ है कि दोनों को एक दूसरे के बिना अधूरा कहा जा सकता है। उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता भी कहा जाता है। अक्सर यह सुनने में आता है कि भारत के संविधान का निर्माण डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने किया। परंतु क्या यह पूरा सच है?

संविधान गाथा / Story of the Constitution

  • 14 अगस्त 1947: आधी रात की आज़ादी और संविधान सभा

    चौदह अगस्त 1947 की मध्य रात्रि देश आज़ाद हुआ। यह दो सदियों की लंबी गुलामी के बाद मिली आज़ादी थी। एक नया दिन आने को था। अंधकार से भरी दो सदियों के बाद स्वतंत्रता का सूर्य उदय हो रहा था। वह दिन भारत की संविधान सभा के लिए भी महत्वपूर्ण था।

  • बाइस जुलाई: तिरंगे को अपनाने का दिन

    भारत की संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को औपचारिक रूप से तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया था। 23 जुलाई को इसे पहली बार औपचारिक रूप से फहराया गया। राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण की पूरी कहानी बहुत दिलचस्प है। 1857 के पहले स्वतंत्रता आंदोलन के पहले देश की विभिन्न रियासतों और राज्यों के अपने-अपने ध्वज थे। विडंबना ही है कि संपूर्ण भारत को उसका पहला ध्वज साम्राज्यवादी अंग्रेजी शासन ने दिया। नीले रंग के इस झंडे में बांयी ओर ऊपर यूनियन जैक बना था जबकि दाहिने हिस्से के बीच में ब्रिटिश क्राउन में स्टार ऑफ इंडिया का चित्र बना था।

  • देश का विभाजन, संविधान और नेहरू

    ऐतिहासिक प्रमाणों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल समेत उस दौर के सभी प्रमुख नेता भारत के विभाजन को टालना चाहते थे। परंतु हालात के मुताबिक वे सभी इसे लेकर अलग-अलग नज़रिया भी रखते थे। कुछ मसलों पर न तो सहमति बन पा रही थी और न ही असहमति। मुस्लिम लीग को स्वतंत्र भारत में सरकार बनाने का आमंत्रण भी ऐसा ही एक मसला था।

आंखों देखी/Ground Report

  • चिकित्सा का पेशा और जाति का जहर

    संविधान भले ही समता और समानता की बात कहता है लेकिन आज भी समाज में ऐसे लोग मौजूद हैं जो जाति के आधार पर दूसरों से भेदभाव करते हैं…

  • आलोक का सपना और हमारा संविधान

    देश के कई प्रतिभाशाली बच्चों की प्रतिभा उचित अवसर और संसाधनों के अभाव में दम तोड़ देती है। वह हमारा संविधान ही है जो सभी नागरिकों को समान अवसर देता है…

तथ्‍य-कथ्‍य / Facts and Rationale