Slide 8

चौदह अगस्त 1947 की मध्य रात्रि देश आज़ाद हुआ। यह दो सदियों की लंबी गुलामी के बाद मिली आज़ादी थी। एक नया दिन आने को था। अंधकार से भरी दो सदियों के बाद स्वतंत्रता का सूर्य उदय हो रहा था। वह दिन भारत की संविधान सभा के लिए भी महत्वपूर्ण था। आइए जानते हैं कि उस निर्णायक दिन देश की संविधान सभा में क्या कुछ महत्वपूर्ण घटित हुआ।

Slide 10

बाबा साहेब अम्बेडकर संवैधानिक मूल्यों के माध्यम से एक सामंजस्यपूर्ण भारतीय राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे। उन्हें अहसास था कि यदि समाज के अंतर्निहित विरोधाभासों से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा गया तो संविधान के उच्‍च आदर्श अधूरे रह जाएंगे। यहीं पर बुद्ध की शिक्षाएं भारतीय समाज में अंतर्निहित विरोधाभासों का समाधान पाने के लिए एक मजबूत संदर्भ बिंदु बन जाती हैं।

Slide 7

26 जनवरी वह दिन है जब 1950 में हमारे देश ने संविधान को अपनाया था और एक गणराज्य के रूप में अपनी नई यात्रा की शुरुआत की थी। उस समय तक देश का शासन भारत शासन अधिनियम के संशोधित स्वरूप के माध्यम से चल रहा था। भारतीय संविधान के 75वें वर्ष में प्रवेश के अवसर पर प्रस्तुत है संविधान सभा की बैठकों के अंतिम सप्‍ताह के महत्‍व को रेखांकित करता यह आलेख।

Slide 9

भारतीय संविधान के निर्माण में उस दौर के तमाम अध्ययनशील और देशहित में सोचने वाले नेताओं एवं विद्वानों का योगदान था। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की भी देश के एकीकरण और संविधान के अहम प्रावधानों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका थी। बात चाहे रियासतों के एकीकरण की हो, सत्ता के लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की या लक्ष्य संबंधी प्रस्तावों के जरिये संविधान को उसका आधारभूत ढांचा मुहैया कराने की, नेहरू की भूमिका हर जगह सामने आती है।

Slide 11

सर्वोच्च न्यायालय चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया है। न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को बॉन्ड के बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया है । काफी समय से चुनावी बॉन्ड के माध्यम से चुनाव प्रक्रिया को भ्रष्ट बनाने के आरोप लगाए जा रहे थे। इस दृष्टि से यह निर्णय दूरगामी प्रभाव वाला साबित हो सकता है।

Slide 5

आर्थिक बदहाली, हिंसा, प्राकृतिक आपदाओं, सांप्रदायिक वैमनस्यता के तूफ़ान के बीच संविधान सभा के 250 से अधिक प्रतिनिधि, भारत के लिए ऐसा संविधान बना रहे थे,जिसमें व्यक्ति को स्वतंत्रता,बंधुता,समता और न्याय दिलाने वाली व्यवस्था बुनने की कोशिश हो रही थी। कठिन परिस्थितियों में संविधान सभा ने किसी तरह की कटुता का प्रदर्शन नहीं किया। किसी सदस्य ने एक बार भी यह नहीं कहा कि भारत को सैनिक शासन व्यवस्था या तानाशाही अपना लेनी चाहिए।

Slide 6

संविधान और हम-1: भारतीय संविधान को जानने, मानने और अपनाने की प्रक्रिया के तहत ‘संविधान संवाद’ की पहल ‘संविधान और हम’ वीडियो शृंखला की आठ कड़ियों में हम प्रस्‍तुत कर रहे हैं संविधान निर्माण की प्रक्रिया से लेकर महत्‍वपूर्ण प्रावधानों और उसमें हुए संशोधनों का लेखा जोखा।

previous arrow
next arrow

विश्लेषण/Explanatory

वाजिब थीं जयपाल सिंह मुंडा की शिकायतें

वाजिब थीं जयपाल सिंह मुंडा की शिकायतें

देश की आज़ादी की लड़ाई के दौर में जहां देश और समाज के सभी प्रमुख मुद्दों पर खुलकर बात की जा रही थी वहीं आश्चर्य की बात है कि आदिवासियों को लेकर बहुत कम बातचीत या विमर्श हो रहा था। भारत को ओलंपिक में हॉकी का पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाली टीम के कप्तान रहे आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने इस विषय पर संविधान सभा में जो कुछ कहा वह एक कड़वी हकीकत है।

26 जनवरी: उन बहसों को याद करने का दिन

26 जनवरी: उन बहसों को याद करने का दिन

26 जनवरी वह दिन है जब 1950 में हमारे देश ने संविधान को अपनाया था और एक गणराज्य के रूप में अपनी नई यात्रा की शुरुआत की थी। उस समय तक देश का शासन भारत शासन अधिनियम के संशोधित स्वरूप के माध्यम से चल रहा था। प्रस्तुत है संविधान सभा की बैठकों के अंतिम सप्‍ताह के महत्‍व को रेखांकित करता यह आलेख।

विचार/Opinion

बौद्ध धर्म की दृष्टि में संवैधानिक मूल्‍य

बौद्ध धर्म की दृष्टि में संवैधानिक मूल्‍य

बाबा साहेब अम्बेडकर संवैधानिक मूल्यों के माध्यम से एक सामंजस्यपूर्ण भारतीय राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे। उन्हें अहसास था कि यदि समाज के अंतर्निहित विरोधाभासों से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा गया तो संविधान के उच्‍च आदर्श अधूरे रह जाएंगे।

संविधान बोध/Constitution Knowledge

क्यों जरूरी है संविधान निर्माण की समझ?‌

क्यों जरूरी है संविधान निर्माण की समझ?‌

आज पूरा देश संविधान दिवस मना रहा है। संविधान दिवस यानी 26 नवंबर का दिन। सन 1949 में आज ही के दिन हमने अपने संविधान को अपनाया था। वही संविधान जो वर्षों तक चली बैठकों, सघन बहसों और वाद-विवाद के बाद हमारे सामने आया था।

स्वतंत्र भारत का गांधीवादी संविधान

स्वतंत्र भारत का गांधीवादी संविधान

श्रीमन नारायण अग्रवाल ने गांधी के रामराज्य को परिभाषित करते हुए लिखा है, ‘‘धार्मिक आधार पर इसे धरती पर ईश्वर के शासन के रूप में समझा जा सकता है। राजनीतिक तौर पर इसका अर्थ है एक संपूर्ण लोकतंत्र जहां रंग, नस्ल, संपत्ति, लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न हो। जहां जनता का शासन हो। तत्काल और कम खर्च में न्याय मिले। उपासना की, बोलने की और प्रेस को आजादी मिले और यह सब आत्मनियमन से हो। ऐसा राज्य सत्य और अहिंसा पर निर्मित हो और वहां ग्राम और समुदाय प्रसन्न और समृद्ध हों।’’

संविधान गाथा / Story of the Constitution

14 अगस्त 1947: आधी रात की आज़ादी और संविधान सभा

14 अगस्त 1947: आधी रात की आज़ादी और संविधान सभा

चौदह अगस्त 1947 की मध्य रात्रि देश आज़ाद हुआ। यह दो सदियों की लंबी गुलामी के बाद मिली आज़ादी थी। एक नया दिन आने को था। अंधकार से भरी दो सदियों के बाद स्वतंत्रता का सूर्य उदय हो रहा था। वह दिन भारत की संविधान सभा के लिए भी महत्वपूर्ण था।

बाइस जुलाई: तिरंगे को अपनाने का दिन

बाइस जुलाई: तिरंगे को अपनाने का दिन

भारत की संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को औपचारिक रूप से तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया था। 23 जुलाई को इसे पहली बार औपचारिक रूप से फहराया गया। राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण की पूरी कहानी बहुत दिलचस्प है। 1857 के पहले स्वतंत्रता आंदोलन के पहले देश की विभिन्न रियासतों और राज्यों के अपने-अपने ध्वज थे। विडंबना ही है कि संपूर्ण भारत को उसका पहला ध्वज साम्राज्यवादी अंग्रेजी शासन ने दिया। नीले रंग के इस झंडे में बांयी ओर ऊपर यूनियन जैक बना था जबकि दाहिने हिस्से के बीच में ब्रिटिश क्राउन में स्टार ऑफ इंडिया का चित्र बना था।

देश का विभाजन, संविधान और नेहरू

देश का विभाजन, संविधान और नेहरू

ऐतिहासिक प्रमाणों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल समेत उस दौर के सभी प्रमुख नेता भारत के विभाजन को टालना चाहते थे। परंतु हालात के मुताबिक वे सभी इसे लेकर अलग-अलग नज़रिया भी रखते थे। कुछ मसलों पर न तो सहमति बन पा रही थी और न ही असहमति। मुस्लिम लीग को स्वतंत्र भारत में सरकार बनाने का आमंत्रण भी ऐसा ही एक मसला था।

आंखों देखी/Ground Report

चिकित्सा का पेशा और जाति का जहर

चिकित्सा का पेशा और जाति का जहर

संविधान भले ही समता और समानता की बात कहता है लेकिन आज भी समाज में ऐसे लोग मौजूद हैं जो जाति के आधार पर दूसरों से भेदभाव करते हैं…

आलोक का सपना और हमारा संविधान

आलोक का सपना और हमारा संविधान

देश के कई प्रतिभाशाली बच्चों की प्रतिभा उचित अवसर और संसाधनों के अभाव में दम तोड़ देती है। वह हमारा संविधान ही है जो सभी नागरिकों को समान अवसर देता है…

तथ्‍य-कथ्‍य / Facts and Rationale

पिट अधिनियम के साथ मद्रास और बम्बई में भी हुई गवर्नर परिषद की स्थापना  

पिट अधिनियम के साथ मद्रास और बम्बई में भी हुई गवर्नर परिषद की स्थापना  

उपनिवेशकाल से लेकर स्वतंत्रता तक, भारत किन-किन विधानों/कानूनों के उतार-चढ़ावों से गुजरा है यह जान कर हम संविधान के निर्माण प्रक्रिया तथा उसके महत्‍व को बूझ पाएंगे…

भारत का शासन चलाने के लिए ब्रिटिश संसद ने बनाया पहला कानून

भारत का शासन चलाने के लिए ब्रिटिश संसद ने बनाया पहला कानून

उपनिवेशकाल से लेकर स्वतंत्रता तक, भारत किन-किन विधानों/कानूनों के उतार-चढ़ावों से गुजरा है यह जान कर हम संविधान के निर्माण प्रक्रिया तथा उसके महत्‍व को…